अरेबियन नाइट्स किस्से: अली बाबा और 40 डाकू 05 (Ali Baba Aur 40 Daku 05)
मरजीना की मदद से कासिम को पूरी इस्लामी रवायत से दफना, अलीबाबा उसकी बेवा से निकाह करेगा| पर क्यों?
पिछली कहानी: अली बाबा और 40 डाकू 04
सुबह हुई, पर कासिम नहीं लौटा| अली बाबा अपने तीन गधों को लेकर छुपी गुफा के लिए निकल पड़ा|
उसका मन पूर्वाभासों से भरा हुआ था, और खड़ी चट्टान के पास जाते हुए उसकी बेचैनी और बढ़ गई|
"बाज़ कोन सिमसिम,” उसने डरते हुए आवाहन किया| वह अन्दर बिलकुल नहीं जाना चाहता था|
आज्ञाकारी चट्टान ने अपना मुंह खोल दिया|
अनिच्छा से, वह अपने खच्चरों को हांकता अन्दर पहुँचा|
अपने भाई के कटे हुए चार टुकड़े गुफा के प्रवेश द्वार के अन्दर लटके देखकर उसका कलेजा मुंह को हो आया|
अनायास कंपकंपाते हुए उसने उसके शरीर के टुकड़ों को खोल कर नीचे उतारा, उन्हें दो कपड़ों में लपेटा और अपने एक गधे पर रख दिया|
हालांकि वह बहुत भयभीत था और वहां से भाग जाना चाहता था, फिर भी हिम्मत कर उसने सोने के सिक्कों से कुछ और बोरे भरकर बाँधे और बाकी दोनों जानवरों पर लाद दिए|
डाकुओं की मांद से सुरक्षित बाहर निकल कर उसने गुप्त मंत्र जपा और सिमसिम को बंद कर दिया| जानवरों का बोझ, ध्यान से टहनियाँ और झाड़-झंखाड़ उनके ऊपर डाल कर छुपा, वह तेज़ी से घर की ओर लौट चला|
सोने के सिक्कों से लदे खच्चर अपनी बीवी को देकर उसने उसे खज़ाना गाड़ देने को कहा| उसने उसे बताया नहीं कि कासिम उसे मिल गया है|
अब वह केवल यही चाहता था कि कासिम को दफना दिया जाए, बिना किसी के ये जाने कि कासिम प्राकृतिक मौत नहीं मरा| भाई की लाश से लदा टट्टू हांकता, वह कासिम के घर पहुँचा और धीरे-से उसका दरवाज़ा खटखटाया|
गुलाम लड़की मरजीना ने कुण्डी खोली और वे घर के अहाते में दाखिल हुए| उसे देखकर, एक ख़याल अलीबाबा के मन में शक्ल लेने लगा| वह जानता था कि वह भरोसेमंद, तर्क शील और अक्लमंद है| उसे किनारे ले जाकर, उसने उसे अपना राज़ कह सुनाया|
"लेकिन पहले,” ये कहते हुए उसने अपनी बात ख़त्म की, “हमें गुपचुप तेरे मालिक के शरीर को मैयत के लिए तैयार करना होगा|"
वह समझ गई| उसने चुपचाप हामी भरी|
दोनों ने मिलकर गधे की पीठ से कासिम का शव उतार लिया और घर के अंदर ले गए| फिर अलीबाबा कासिम की बेवा से मिलने अन्दर गया| उसने उसके दरवाज़े पर धीरे से दस्तक दी और उसका नाम पुकारा|
बड़ी आस भरी हड़बड़ी से उसने दरवाज़ा खोला| ज़ुबान की नोक पर हज़ारों अबूझे सवाल उड़ने को तैयार थे, लेकिन उसे एक नज़र देखते ही उसकी हर उम्मीद पर पानी फिर गया| डर ने उसका गला दबोच लिया और आँसू फिर उसकी आँखों से बह चले|
अली बाबा देख सकता था कि वह सारी रात रोती रही थी| धीरे-से, उसने उसके हाथों को अपने हाथों में ले लिया| और उसे उस कमरे में ले गया जहाँ उसके खाविंद की बदबूदार देह टुकड़े-टुकड़े हुई पड़ी थी|
मांस अभी से सड़ने लगा था और मौत की बू सारे कमरे में फ़ैल गई थी| वह डर से बौरा गयी| लहर दर लहर उठती मतली ने उसके बदन को हिलाकर रख दिया| उसके पैरों में जैसे जान ही न रही| वह जमीन पर ढेह गई और बेआवाज़ रोने लगी।
अली बाबा उसका दुःख देखता, कमरे में चुपचाप खड़ा था| ग़म उसपर हावी था, लेकिन करने को बहुत कुछ बाकी था| कर्तव्य की भावना ने उसका डर भुला दिया|
उसके अन्दर का तूफ़ान जब थम गया, तो अली बाबा ने उसे बताया कि कहाँ और कैसे उसे अपने भाई के टुकड़े मिले, और अब उन्हें क्या करना चाहिए|
"जो हो चुका, सो हो चुका,” अली बाबा ने वाकया ख़त्म करते हुए कहा| “उसे पलटा नहीं जा सकता| लेकिन हम सब अब बड़े ख़तरे में हैं| जब डाकू अपनी मांद में लौट कर लाश गायब पाएंगे, तो जान जायेंगे कि उनके राज़ अब राज़ नहीं रहे|”
"वे तब तक चैन से नहीं बैठेंगे जब तक ये पता न लगा लें कि इसका ज़िम्मेदार कौन है| कासिम को दफनाना होगा, किसी के ये जाने बिना कि वह स्वाभाविक मौत नहीं मरा| हमारी ज़िन्दगी अब हमारी गोपनीयता पर निर्भर होगी|"
समझ कर उसने चुपचाप सिर हिलाया और बखेड़े को छुपा कर रखने का वादा किया। लेकिन अली बाबा की बात अभी खत्म नहीं हुई थी|
“तेरा इद्दाह ख़त्म होने पर,” उसने आगे कहा, “मैं तुझसे निकाह कर लूँगा, जैसा कि रिवाज़ है| तू पहले से ही अमीर है और ब्याह के बाद जब हम यहाँ तेरे साथ आकर रहने लगेंगे, तो ध्यान से जब हम अपनी नई पाई दौलत खर्च करना शुरू करेंगे, तो हम पर किसी को शक भी नहीं होगा|”
"तू हमारे साथ सुरक्षित, खुश, आराम और चैन से रह पायेगी| मुझे ये सब बातें अपनी पहली बीवी को समझानी पड़ेंगीं, ताकि वो तेरी दुविधा समझ सके और तुम दोनों के बीच कोई मन-मुटाव न हो|”
बेवा ने मौत से भरे कमरे में अपने दोनों हाथ, दुआ में आसमान की ओर उठा दिये, और एक आंसू उसके गालों पर ढलक आया|
“अल्लाह बेहतर जानता है,” उसने सिर्फ इतना ही कहा| रह-रह कर उसकी आँखों से खामोश रुलाई फूट पड़ती|
“पा, इद्दा क्या होता है?" जोश से पूछा।
"कुरान में बेवाओं को उनके शौहर के इन्तकाल के चार चाँद महीने और 10 दिन बाद तक किसी और से लगने की मनाही है (अल बक़रह 2:234), अगर वे पेट से नहीं हैं| तो शायद यह मुस्लिम विधवाओं के लिए निर्धारित शोक की अवधि है|"
"130 दिन के आसपास ही क्यों?" ईशा ने पूछा| "10 या 100 या 1000 दिन क्यों नहीं? 130 दिन का क्या महत्व है?"
"कुछ इस्लामी विद्वान," रोष ने उत्तर दिया, "मानते हैं कि पति की मौत और दूसरे निकाह के बीच शोक करने के लिए इतना वक़्त होना काफी है, औरत को इस ज़िल्लत से बचाने के लिए कि उसने जल्दबाज़ी की| इस मियाद के पूरा होने से पहले अगर वह दूसरी शादी करती है, तो उसे ताने सुनने पड़ सकते हैं|”
"दूसरों का ऐसा अनुमान है कि इतनी अवधि आवश्यक और पर्याप्त थी, सही से ये पता लगाने के लिए कि क्या महिला गर्भवती है या नहीं|"
"दिलचस्प बात ये है कि साढ़े चार महीने एक सामान्य गर्भावस्था की अवधि का लगभग आधा हिस्सा है| अब, मैं तो डॉक्टर हूँ नहीं और न ही मैं ये जानता हूँ कि उस ज़माने में गर्भावस्था निर्धारित करने के लिए लोग क्या बाहरी उपकरण इस्तेमाल करते थे| तो गर्भ वाले तर्क पर टिप्पणी देने के लिए मेरी जानकारी तो काफी नहीं है|"
"लेकिन अगर वह पति की मृत्यु के समय गर्भवती हो,” होश ने पूछा, “तो दूसरा निकाह करने से पहले विधवा को कितना समय रुकना पड़ता है?"
"मुझे लगता है," रोष ने जवाब दिया, "कि बच्चा जनने तक मुसलमान जच्चा को इंतजार करने का विधान है|"
"फिर क्या हुआ, पा?" जोश ने बेसब्री से पूछा| वह चाहता था कि चालीस चोर और उनकी जादुई गुफा की कहानी अब आगे बढ़ाई जाये|
अगली कहानी: अली बाबा और 40 डाकू 06