बच्चों की मज़ेदार कहानी: पाँच छोटे बन्दर (Panch Chhote Bandar)
‘पांच छोटे बंदर’ नामक एक पुरानी नर्सरी कविता गाकर रोष होश को पांच से एक तक की उल्टी गिनती सिखाता है|
पिछली टेलटाउन कहानी: अस्वीकृति अस्वीकार
“कहानी!" होश ने हुक्म दिया|
“कोई कहानी नहीं,” रोष ने कहा| “मैं थक गया हूँ|”
होश अपने पिता के सिर पर चढ़ गया|
“कहानी!" उसने मांग की|
रोष ने उसे नीचे खींच लिया, उसकी गठरी बनाई और बिस्तरे पर अपनी जाँघों के नीचे उसे क़ैद कर लिया|
“कोई कहानी नहीं आज,” वह गुर्राया| “बापू थक गया तेरा|”
होश ने बहुत खींचातानी की, और ज़बरदस्त ज़ोर लगाने के बाद आखिरकार अपने पिता की जाँघ के नीचे से निकल भागा|
वह रोष की पीठ पर जा कूदा, और उसके ऊपर लेट कर पूरे ज़ोर से उससे चिमट गया|
“का... नी!” उसने ज़िद की|
“ना,” रोष ने कमज़ोरी-से ऊँगली हिलाई, पर उसका प्रतिरोध पिघल रहा था|
“कह... आनी!” अपने पिता के कान में फुसफुसाते हुए, होश ने फिर पूछा|
रोष को बहुत अच्छा लगता था जब उसका नन्हा-सा बेटा उसकी पीठ पर चढ़ जाता था| लेकिन वह बहुत थका हुआ था|
“कोई कहानियाँ नहीं,” उसने कड़क-सा मुँह बना कर, होश को अपनी पीठ से नीचे गिरा, अपनी बाज़ू के नीचे फिर क़ैद करते हुए कहा| “और आज तूने अपनी गिनती सीखी?”
होश ने शैतानी से न में सिर हिलाया| कुश्ती लड़ते हुए, वह बाज़ू के नीचे से निकल गया और अपने पिता की पकड़ से दूर भाग गया| फिलहाल सीखने के मूड में वो बिल्कुल नहीं था|
अब हर रात वह अपने पिता को केवल कुछ मिनटों के लिए देख पाता था| जहाँ तक उसका सवाल था, ये उसका खेलने का वक़्त था, पढ़ने का नहीं|
“का... हानी!” उसने अपने छोटे-से सिर को अजीबोगरीब अंदाज़ से मोड़ते हुए मनुहार की| “सुना दो न पप्पा...!”
रोष उसकी हरकतों पर हँस पड़ा|
“इधर आ, बन्दर कहीं का| सुनाता हूँ तुझे कहानी,” कहकर वह उठा, और उस छोटे से कमरे में अपने बेटे के पीछे दौड़ पड़ा| आसानी से पकड़ा गया होश|
“पाँच बंदरों की कहानी सुनाता हूँ तुझे| पांच छोटे बंदर, तेरे जैसे नटखट| पाँच छोटे बन्दर, जो हमेशा बिस्तरों पर कूदते रहते थे|”
हँसते-खिलखिलाते, दोनों उछल कर वापिस बिस्तर पर चढ़ गए| रोष ने पाँचों उंगलियाँ फैलाकर अपना पंजा उठाया|
“ये पाँच बंदर हैं,” उसने कहा| “कितने बन्दर हैं ये?”
“ये तो उंगलियाँ हैं!” होश ने जवाब दागा| “बन्दर नहीं!”
“मान लो बन्दर हैं,” रोष ने कहा| “अब बता कितने हैं?”
“पाँच?” सकुचाता जवाब आया|
“बिल्कुल,” रोष बोला| नर्सरी की एक पुरानी अंग्रेज़ी कविता गुनगुनाने लगा वह| शब्द धीरे-धीरे उसके पास लौट आये| अपने लड़के के लिए वह उन्हें गा उठा:
पांच छोटे बन्दर, कूद रहे बिस्तर पर
एक गया गिर, लगी चोट उसके सिर
माँ ने बुलाया डॉक्टर, और डॉक्टर ने कहा
अब कोई भी बन्दर, कूदे न बिस्तर पर
लय के साथ-साथ होश भी अपना नन्हा-सा सिर हिला रहा था| मज़ेदार था ये तो| रोष ने अपने फैले पंजे में से एक उँगली गिरा ली| चार अभी भी खड़ीं थीं|
“एक बन्दर गिर गया बिस्तर से अब,” उसने कहा| “देखो, बस चार बचे अब| कितने बचे?”
“चार,” जवाब आया|
“बिल्कुल,” रोष बोला, और फिर गा उठा:
चार छोटे बन्दर, कूद रहे बिस्तर पर
एक गया गिर, लगी चोट उसके सिर
माँ ने बुलाया डॉक्टर, और डॉक्टर ने कहा
अब कोई भी बन्दर, कूदे न बिस्तर पर
होश अब साथ-साथ ताली बजाने लगा था| रोष ने अपने फैले हाथ की एक उँगली और नीचे गिरा ली|
“ये हैं तीन,” उसने कहा, और फिर पूछा, “कितने हैं ये?”
“तीन,” होश ने कहा|
“बिल्कुल,” रोष बोला, और उसने आगे गाया:
तीन छोटे बन्दर, कूद रहे बिस्तर पर
एक गया गिर, लगी चोट उसके सिर
माँ ने बुलाया डॉक्टर, और डॉक्टर ने कहा
अब कोई भी बन्दर, कूदे न बिस्तर पर
अपने नन्हे-नन्हे हाथों से होश ने ताली बजा-बजा कर ताल-से-ताल मिलाई| रोष ने अपने फैले हाथ की एक और उंगली नीचे गिरा ली|
“ये हैं दो,” उसने कहा, और अपने बेटे से पूछा, “कितने हैं ये?”
“दो,” प्रफुल्लित जवाब मिला|
“बिल्कुल,” रोष बोला, और आगे गाने लगा:
दो छोटे बन्दर, कूद रहे बिस्तर पर
एक गया गिर, लगी चोट उसके सिर
माँ ने बुलाया डॉक्टर, और डॉक्टर ने कहा
अब कोई भी बन्दर, कूदे न बिस्तर पर
होश अब जोश में था| भांप गया था कि क्या आने वाला है| जब रोष ने अपने फैले हाथ की एक और ऊँगली गिरा दी, तो वो जानता था कि क्या बच गया है|
"एक!" वह चिल्लाया।
जब रोष ने खुशी से हामी भरी, तो होश ने गीत पकड़ लिया| उसने गाया:
एक छोटा बन्दर, कूद रहा बिस्तर पर
वो गया गिर, लगी चोट उसके सिर
माँ ने बुलाया डॉक्टर, और डॉक्टर ने कहा
अब कोई भी बन्दर, कूदे न बिस्तर पर
रोष ने भी खूब जोशो-खरोश से ताली बजा-बजा कर उसका साथ दिया| गीत खत्म हुआ, तो दोनों साथ-साथ खुशी से हँस पड़े|
“फिर से करो, फिर से करो,” होश ने अनुनय की|
“लेकिन अब तो कोई और बन्दर बचा नहीं बिस्तर पर,” रोष ने कहा, “गिर के अपनी खोपड़ी फोड़ने को|”
“फिर से शुरू करो, फिर से शुरू करो,” होश ने कहा|
"ठीक है,” रोष हँसा, और पाँच से फिर एक बार शुरू किया उन्होंने|
“फिर से करो, फिर से करो,” खत्म होने पर, होश ने फिर से गुहार की|
"ठीक है,” रोष हँसा| उन्होंने दोबारा किया सब, पर इस बार गिनती होश अपनी उँगलियों पर कर रहा था|
“फिर एक बार, फिर एक बार,” होश ने ज़िद की| उसे बहुत मज़ा आ रहा था| वो नहीं चाहता था कि ये खत्म हो|
“ठीक है,” रोष फिर हँसा, “लेकिन बहुत सिर-फुड़व्वल बन्दरों के लिए अच्छी नहीं| डॉक्टर माँ से कह रहा है, कि इस बार के बाद, सारे बंदरों को सोने भेजो| डील?”
"डील," होश ने वादा किया|
तो, एक आखिरी बार, दोनों ने मिलकर फिर गीत गाया| और उसके बाद, बंदरिया अम्मा ने सारे छोटे बंदरों को उनके बिस्तरों में सोने भेज दिया|
उस रात होश को पांच छोटे बंदरों के बड़े मज़ेदार सपने आये, जिसमें वे बिस्तरों पर लगातार कूद रहे थे और अपनी-अपनी मुण्डियाँ ठोक रहे थे|
बंदरिया अम्मा को भी उस रात सोते हुए अपना बचपन याद आ गया|
अगली टेलटाउन कहानी: एक शरीर में कितने दो?