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diamondरोमांचक कहानी: हीरे की चोरी 2 (Heere Ki Chori 2)

 

दुर्ग के मलबे में जिंदा मिले पटेल से, डायमंड की चोरी के अपराध के बारे में पूछताछ होती है कि हीरा किसने चुराया

पिछली टेलटाउन कहानी: हीरे की चोरी 1

रोष ने होश की कहानी पढ़ना जारी रखा:

सर जुबिन जब आखिरकार अपनी लिमोसिन में चले गए, तो लुट्टू और प्रिंगल और इंतज़ार न कर सके| उन्होंने मुख्य जासूस के पास जाकर सुबह जो कुछ भी हुआ था, बता दिया|

“तो, तुम्हें लगता है पटेल है?” मुख्य जासूस ने पूछा|

प्रिंगल और लुट्टू ने सिर हिलाकर हामी भरी|

“उसने मुझसे ये भी कहा था कि हीरों से उसे मुहब्बत है,” लुट्टू ने कुबूल किया|

मुख्य जासूस ने अपनी टीम के दो सदस्यों को बुलाकर इनके बयान दर्ज करने को कहा| गुप्तचर लुट्टू और प्रिंगल को अलग-अलग कमरों में ले गए|

इलाके की घेराबंदी कर दी गयी थी, और हर जगह सर्चलाइट जल रहीं थीं| अलग-अलग दल सारी रात बिना थके काम करते रहे|

मुख्य जासूस ने एससीबी टीम की देखरेख जारी रखी, और स्थानीय पुलिस से सम्पर्क बनाए रखा, जो अब सूँघने वाले कुत्तों का इस्तेमाल कर रही थी|

भोर के करीब, जब वह अपनी पहली कॉफी का घूँट भरने लगा, जो उसके दल के एक सहयोगी ने उसे लाकर दी थी, तो उसके लिए तुरंत बुलावा आ गया| मलबे के बीच से एक देह मिली थी|

“डिटेक्टिव्स!” वह चिल्लाया| “जल्दी! इस आदमी को बाहर निकलने में मेरी मदद करो| ये ज़िन्दा है अभी!”

आदमी बेहोश था और नाम-मात्र को ही साँस ले रहा था, लेकिन कोई ज़्यादा चोट उसे लगी दिखाई नहीं दे रही थी| लुट्टू और प्रिंगल भी व्यक्तिगत अपराध-बोध और शर्म के कारण दलों की मदद करते अभी वहीं थे|

उन्होंने फौरन आदमी की शिनाख्त कर दी| उनके चेहरे पर हैरत साफ दिखाई दे रही थी, लेकिन उन्होंने पुष्टि की, कि वो आदमी मिस्टर पटेल ही था|

“अब क्या एम6?” एक गुप्तचर ने पूछा|

“जब तक एम्बुलेंस आती है,” मुख्य जासूस ने जवाब दिया, “नर्सों से जो हो सकता है, कर लेने दो| एक हथियार-बंद डिटेक्टिव इस आदमी की सुरक्षा में 24 घंटे तैनात करो, और जैसे ही इसे होश आये मुझे इत्तला करो|”

“अगर ये बोलने की हालत में आये, तो इसका बयान लो| इसके होश में आने पर मैं जितनी जल्दी आ सकूँगा, आकर इससे पूछताछ करूँगा| तब तक, मेरे लिए खान को सेटेलाइट फ़ोन पर ट्राई करते रहो|”

उस आदमी को अपने गुप्तचर के ज़िम्मे छोड़ कर, एम6 उस क्षेत्र में जहाँ वो मिला था और बाकी के अपराध-स्थल की बारीकी से जाँच करने लौट गया|

होश में आने पर पटेल ने अपना बयान दे दिया| गुप्तचर को जब आखिरकार खान का फोन मिला, तो खान ने फोन पर पटेल की कहानी की पुष्टि कर दी| क्योंकि खान के लिए काम से दूर ये एक दुर्लभ छुट्टी थी, तो कल पूरा दिन उसने फोन बंद रखा था|

उसे हीरे की चोरी की खबर दी गयी और उसने पुष्टि की, कि पटेल आला दर्जे का भरोसेमंद आदमी है, जो वक़्त ज़रुरत उसकी ग़ैरहाज़िरी में उसके लिए काम किया करता था|

तहकीकात में तेज़ी लाने और सवालों के जवाब देने वो तुरंत लौट रहा है, उसने कहा|

अगली दिन दुर्ग से आखिरकार फारिग होकर, एम6 पटेल से तहकीकात करने दोपहर बाद ही काफी देर गए पहुँच पाया| मीडिया का ज़बरदस्त दबाव था, लेकिन अपनी प्रथागत व्यवहार-कुशलता से वह फिलहाल उनके सवाल टाल आया था|

“तो, पटेल,” उसने अस्पताल की खिड़की से बाहर देखते हुए अब कहा| “प्रतिष्ठित गुप्तचर और फोरेंसिक विशेषज्ञ?"

"हाँ," पटेल ने धैर्य से जवाब दिया|

“तुम मुझे वो सब बताओगे जो मुझे जानना ज़रुरी है, नहीं?” एम6 ने पुचकार कर कहा| “मुझे पूछने पर मजबूर नहीं करोगे, क्यों?”

“मैं बयान पहले ही दे चुका हूँ,” पटेल ने कहा|

“जो फुर्सत मिलने पर मैं यकीनन पढूँगा ही,” एम6 फुफकार उठा|

पटेल ने मुख्य जासूस के मूड को भाँप लिया| उसने चुपचाप अपनी कहानी दोहरा दी|

“दिलचस्प था तुम्हारा काला चश्मा,” पटेल की बात खत्म होने पर एम6 ने कहा| “उनसे साज़िश का शक हुआ मुझे, तो उनका मैंने विश्लेषण करवा लिया| बड़े जानकारी पूर्ण परिणाम सामने आये| तुम्हें ऐसा क्योंकर लगा कि केसेल के काम में अपने पहले ही दिन, तुम्हें इन्फ्रारेड से बचाव की ज़रूरत होगी?”

“ऐसा कुछ नहीं है,” पटेल ने कहा| “मैं हमेशा पहनता हूँ उसे कामों पर| घटना-स्थल पर उनसे आती षड्यंत्र की बू मात्र संयोग है|”

“संयोग, मेरी जूती!” एम6 बिफर उठा, और खिड़की से मुड़कर सीधा पटेल को घूरने लगा|

पटेल अब डर गया|

‘इसे लगता है मैंने किया ये!’ उसने सोचा| ‘हे ईश्वर! इतना बुरा लगता तो है ...’

“पानी नूर के बुलेट-प्रूफ काँच कवर के अन्दर कैसे पहुँचा?” एम6 ने नज़र तरेरी|

“मुझे नहीं पता,” पटेल घबरा कर बोला| “शायद डायमंड की बर्फ से बनी नकल, जो रेफ्रिजरेशन के बंद हो जाने पर पिघल गयी?”

एम6 ने उसके प्रस्ताव पर सदमा या हैरानी दिखाए बगैर, सपाट चेहरे से घूरा उसे| ‘क्या ये वाकई उतना निर्दोष है,’ उसने सोचा, ‘जितना ये दावा कर रहा है?’

नूर के अभेद्य काँच कवच में पानी का पाया जाना सार्वजनिक सूचना नहीं थी, और अब तक सिर्फ सर जुबिन को ये बात बताई गयी थी| तो, उसके इस अचानक सवाल पर पटेल का जवाब उम्मीद से कुछ ज़्यादा तेज़, कुछ ज़्यादा विश्वसनीय, कुछ ज़्यादा मुनासिब था|

“बर्फ की नकल! ह्म्म्म,” एम6 ने इस विचार को सावधानी से तोला| "बेदाग़ नक्काशी? असल से बेदाग़ बदलाव, सारी मानवीय और इलेक्ट्रॉनिक सुरक्षा को हराकर? गार्ड, अलार्म, सेंसर, लेज़र, और इसकी पोज़ीशन पर हर दम अपलक घूरते कई कैमरों के बावजूद? किस मकसद से?”

“वक़्त पाने के लिए,” पटेल ने सुझाया| “कर पाना न तो आसान, न काम जल्दी का, पर संभव| अपनी जगह पर जमा, सम्पूर्णता से यहाँ अपना आकार संभाले, सिर्फ आदमी की आँख को धोखा देने के लिए – जब तक सही समय न आ जाए... कैमरे? वे तो आसानी से धोखा खा जाते हैं|”

संभावनाएँ पचाते हुए एम6 ने इस आदमी के बारे में सोचा| असली नकली हीरे की पहचान बताने वाली दसियों बातें उसके मानस में फिल्म की तरह कौंध उठीं|

‘क्या बर्फ का ऐसा इस्तेमाल हो सकता है?’ उसने सोचा| ‘या पानी वहाँ रखा गया, सिर्फ उन्हें गुमराह करने के लिए?’

उसने पटेल से कई और नोकीले सवाल पूछे, जिनके उसे तुरंत और जाहिरा तौर पर ईमानदार जवाब मिले| उन दोनों की बातचीत से पहेली के कई गायब टुकड़े अपने ठीक जगह पहुँच गए|

अपराध और अपराध-स्थल के बारे में नयी जानकारी पाकर उसकी हताशा कम होने लगी| पटेल के तेज़ दिमाग और पैने फोरेंसिक कौशल का वह कायल होने लगा| लेकिन पुरानी आदतें मुश्किल से छूटती हैं| शक बरकरार रहा|

“धन्यवाद, पटेल,” एम6 ने अंत में कहा| “नज़र आ रहा है कि तुम्हें इसकी खूब जानकारी है| दरअसल इतनी ज़्यादा, कि ये मानना मुश्किल हो रहा है कि ये सारी योजना तुम्हारी खुद की ही बनाई हुई नहीं|”

“जब काण्ड हुआ, मैं मौका-ए-वारदात पर था, सर,” अस्पताल के बिस्तर से पटेल ने धैर्यपूर्वक उत्तर दिया| "अगर प्लान आपने खुद बनाया होता, तो क्या आप खुद साईट पर होते? मैं मर सकता था वहाँ|”

“पर मरे नहीं,” एम6 ने कहा, और कमरे से बाहर निकल गया|

अपने ऑफिस वापिस पहुँच, एम6 अपनी कैप उतारकर काफी देर अपनी मेज़ पर सोच में डूबा बैठा रहा| फिर उसने गुर्रा कर एक आदेश दिया| सादे कपड़े पहने एक आदमी भीतर आया| एम6 ने उसे कुछ निर्देश और एक पता दिया| आदमी तेज़ी से बाहर निकल गया|

नींद की कमी से एम6 थका हुआ था, लेकिन दुर्ग के मलबे के पास वापिस लिवाए जाने के आदेश दिये उसने| वहाँ पहुँचकर, वह सीधा वहाँ पहुँचा जो उसे खटक रहा था| जिसकी उसे तलाश थी, वो उसे मिल गया| वहाँ खड़े, उसे पटेल की बातें याद हो आयीं|

‘विश्वास करना कितना मुश्किल है,’ उसने सोचा|

अचानक थोड़ी दूर पर दो गाड़ी चालू होने की आवाज़ों से, उसके आसपास छाया सन्नाटा भंग हो गया| इंजनों का शोर बढ़ा| मलबे की घेराबंदी के इतनी पास इस गतिविधि के होने का कोई कारण नहीं था|

एम6 ने अपना रिवाल्वर खींचा और आवाज़ की ओर दौड़ पड़ा| दो लोग| मोटर साइकिल की काली हेलमेट, चमड़े के काले जैकेट और दस्ताने, काली पेंट और काले जूते पहने| दोनों आकृतियों में से छोटी कद काठी वाले ने अपने हेलमेट का शीशा ऊपर उठाया|

“रुको, एम6!” उसने चेतावनी दी।

एम6 सकपका गया|

“पटेल!” उसने हैरत से कहा|

पटेल ने तत्काल अपनी हेलमेट का शीशा नीचे किया और अपनी मोटर साइकिल का एक्सेलरेटर दबा दिया| वह उड़ चली| दूसरा चालक उसके पीछे हो लिया|

एम6 ने निशाना साधा और गोली दाग दी| दूसरा चालक फिसल गया और अपनी टांग दबोचता बाइक से गिर पड़ा| पर पटेल रेंज से बाहर हो चुका था| एम6 दूसरे सवार की ओर भागा, बढ़ती परछाइयों में उसके खो जाने से पहले उस तक पहुँचने की उम्मीद में|

लेकिन दूसरा सवार बच कर निकल भागने की हालत में नहीं था| जब एम6 अंततः उस तक पहुँचा तो वो खून से लथपथ था और दर्द से छटपटा रहा था| एम6 ने उसके हेलमेट का रंगे कांच का शीशा उठा दिया|

“तू?” उसे पहचान कर, वह हैरानी से सकपका गया|

लुट्टू जासूस को कोस उठा|

“तुझसे बाद में निपटूंगा,” एम6 दहाड़ा| “पटेल कहाँ गया?”

“तुमने मुझे गोली मार दी।"

"मैं तुझसे आखिरी बार पूछ रहा हूँ|”

“दफा हो जाओ|”

एम6 ने रिवाल्वर लुट्टू की ओर तान दी|

"बता नहीं सकता!” लुट्टू बोल उठा| “मुझे पता ही नहीं!"

“चालाकी नहीं,” एम6 ने चेतावनी दी| उसकी आँखों में एक दुष्ट चमक थी|

“प्लीज! मैंने कुछ नहीं किया,” लुट्टू अचानक काँप उठा| इस पागल से डर गया था वो| “तुम ऐसा नहीं कर सकते|”

“कर सकता हूँ,” एम6 ने कहा, और फायर कर दिया|

“चोटी पे,” लुट्टू चीखा| “माउंट ओबादा। वहां, ऊपर|”

एम6 ने गिरी हुई बाइक उठाई और उसपर सवार होकर पर्वत शिखर की तरफ बढ़ गया।

लुट्टू ने अविश्वास से अपनी देह में धँसी गोलियों को देखा, और उनसे बाहर उछलते खून के ताज़े फव्वारे को विह्वलता से दोबारा घोटने की कोशिश की।

इस बीच, शिखर पर मिलने की नियत जगह पर, सर से पाँव तक काले से ढके एक और मोटर-साइकिल सवार से, जो उसका वहां इंतज़ार कर रहा था, पटेल जा मिला था|

“फौरन चले आने के लिए शुक्रिया,” आखिरकार निश्चिन्त होकर, अपना हेलमेट उतारते हुए, पटेल ने दूसरे सवार से कहा|

“इतनी देर कैसे लगी?” दूसरे सवार ने पूछा| उसने अपना हेलमेट उतारने या उसका शीशा चढ़ाने की कोई कोशिश नहीं की|

“हम किले से निकल रहे थे,” पटेल ने जवाब दिया, “तो एम6 ने पकड़ लिया|”

“हम?”

“लुट्टू और मैं|”

“अब कहाँ है लुट्टू?”

“धराशायी| या तो मर चुका, या मर रहा होगा| मैंने गिरते देखा था उसे| एम6 ने उसे गोली मार दी|”

“क्यों?”

“क्योंकि वो मेरे साथ था| एम6 को लगता है कि हीरे की चोरी मैंने की|”

“गलत लगता है,” दूसरे सवार ने शान्ति से कहा, अपनी रिवाल्वर निकाली और पटेल के माथे से सटा कर दाग दी|

“हीरे की चोरी तुमने नहीं की| मैंने की!”

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