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young old Indian manअरेबियन नाइट्स किस्से: अली बाबा और 40 डाकू 02(Ali Baba Aur 40 Daku 02)

 

अगर डाकुओं के यहाँ भी चोरी करना गलत है, तो रॉबिन हुड को हीरो क्यों मानते हैं?

 

दूसरा भाग ...

पिछली कहानी: अली बाबा और 40 डाकू 01

"पा, इनशाल्लाह क्या होता है?" जोश से पूछा।

"इंशाअल्लाह (إن شاء الله)," रोष ने समझाया, "एक अरबी जुमला है जिसका मतलब है ‘भगवान की इच्छा' या 'अल्लाह ने चाहा तो'।"

"मुसलमान मानते हैं कि सब कुछ मकतूब है, यानी लिखा हुआ है या नियत है| तो इंसान अगर कुछ भी करना चाहेगा, तो वो तभी होगा अगर उसमें खुदा की मर्ज़ी होगी|”

“इसका मतलब ये भी हो सकता है कि बोलने वाला यह मानता है कि जो काम वह करने जा रहा है वह ऊपरवाले की ही मरज़ी है, न कि वक्ता की उस काम में सफल होने की खुद की ख्वाहिश|”

"लेकिन ये मानना तो बहुत खतरनाक है,” होश कह उठा| “क्योंकि आप इंशा अल्लाह कह कर युद्ध शुरू कर सकते हो, किसी को मार सकते हो या चोरी कर सकते हो| करो वो जो करना चाह रहे हो, लेकिन चिपका दो ईश्वर पर|”

"मानव इतिहास में ऐसी कहानियाँ भरी पड़ी हैं जब प्रभु के नाम पर दुःख दिए गए हैं, नुकसान किये गए हैं," रोष ने हामी भरी| “हाँ, ऐसा मत बनाना है तो खूब जोखिम भरा, लेकिन धारणा तो बनती ही आस्था की छलांग से है|”

"अंधेपन में जो शुरू होता है, वह आमतौर पर जीवन-भर अंधेरे में रहने को अभिशप्त है। फिर भी, प्रकाश मौजूद है।"

“मेरा विश्वास है कि प्रकाश सिर्फ उसकी मेहर से आ सकता है, और तभी जब वह चाहे| तो आस्था और ज्ञान को बड़ी मुश्किल होती है, साथ-साथ रहने में|”

"इस बीच जीवन तो जीना ही है, तो व्यक्ति को चुनना पड़ता है कि वह कैसे अपना जीवन जियेगा| ज्ञान हर किसी के पास तो होता नहीं, फिर भी ऐसे लोग ख़ुशी से अपना जीवन जी सकते हैं। आस्था भी हर किसी के पास नहीं होती, लेकिन जीवन में ख़ुशी की मनाही ऐसे लोगों को भी नहीं है|”

"मैं ज्ञान का भक्त हूँ और जीवन का छात्र हूँ, फिर भी आस्थावान जीवन जीता हूँ| मेरा भरोसा मुझे गाइड करता है| मेरी निष्ठा कि सूरज कल फिर उगेगा| मेरा यकीन कि मेरा बेटा बुढ़ापे में मेरी देखभाल करेगा| मेरा विश्वास कि मेरे देनदार मेरा क़र्ज़ चुकाएँगे| मेरा भरोसा कि न्याय की जीत होगी।"

"आस्था आशा देती है। आशा जीवन के लिए अमृत है। वाणिज्य का आधार है। आस्था उपयोगी है। मनुष्य को इसकी ज़रूरत है। खासकर इसलिए क्योंकि ज्ञान दुर्लभ है| उसे कमाना पड़ता है।"

"लोग जीवन में जहाँ सबसे कम अड़चन हो, वो रास्ता पकड़ते हैं| आस्था आसान है क्योंकि तुम्हें ज्यादा कुछ करना नहीं पड़ता| किसी भी कथित प्राधिकारी का प्रतिनिधित्व स्वीकार कर लो| ज्ञान बहुत व्यक्तिगत है। कड़ी मेहनत के बिना ये आता ही नहीं।"

जोश चादर के नीचे से कसमसाया| उसे अब कुछ समझ में नहीं आ रहा था|

रोष ने उसकी बेचैनी महसूस की और अपने अरेबियन नाइट्स किस्से पर वापिस पर लौट गया, "तो, अली बाबा ने अपने तीनों गधे खोजे और चट्टान को फिर से खुलने की आज्ञा दी|"

"जब वह खुली, तो वह सावधानी से अपने जानवरों के साथ उसके अन्दर घुस गया| जैसे ही वे सुरक्षित अन्दर पहुँचे, चट्टान का खुला मुंह अपने आप बंद हो गया| लेकिन अलीबाबा घबराया नहीं| उसने वो जादुई फिकरे याद कर लिए थे, जिनसे यह तिलिस्म खुलता और बंद होता था|”

"अब वह एक बड़ी गुफा में था। जिसकी छत के छोटे-छोटे छेदों से प्रकाश की किरणें इस गुप्त तिजोरी में आ पा रही थीं|”

“इस रौशनी में उसने देखा कि यहाँ तो वो सब तरह के खज़ाने भरे थे जिन्हें इकट्ठा करने में सालों की मेहनत लगी होगी| बहुमूल्य रेशम, वस्त्र और कालीन| सोने और चांदी के बर्तनों से भरे बोरे| सोने की अशर्फियों से भरे थैले| जहाँ देखो|”

"पा, अशर्फियाँ क्या होती हैं?" जोश से पूछा।

“सोने के छोटे-छोटे सिक्के," रोष ने कहा, "इन्हें उर्दू में अशरफी या मुहर भी कहते हैं| ये फारसी सोने के सिक्के लगभग 53 ग्रेन (ग्रेन है डेढ़ रत्ती के बराबर की तौल) भारी होते थे, यानि गिन्नी के आधे वज़न से कुछ कम|"

"और गिन्नी क्या होती है?" उन्होंने फिर पूछा।

“गिन्नी 113 ग्रेन का या 7.3 ग्राम का इंग्लैंड का 22 कैरेट सोने का सिक्का है," रोष ने उत्तर दिया, "जिसका अंकित मूल्य आज एक पाउंड स्टर्लिंग या ढाई न्यूज़ीलैण्ड डॉलर (NZD) के बराबर है| गिन्नी का सिक्का आज भी सर्राफे में प्रयोग होता है।"

“खैर, गुफा में इतनी दौलत थी कि दिमाग चकरा जाए| लेकिन डर अलीबाबा के दिल में किसी टाइम-बम की तरह टिक-टिक कर रहा था| उसने सोने की अशरफियों की जितनी थैलियाँ तीनों टट्टुओं पर लादी जा सकती थीं, लाद दीं|”

“फिर जादुई शब्द बोलकर उसने गुफा का द्वार खोला और तेज़ी से बाहर निकल आया| आस पास अभी भी कोई नहीं था|”

भयभीत मगर उत्साहित, अपनी लूट को लकड़ियों और टहनियों से ढक, वह अपने खच्चरों को घर की ओर हाँक चला| अभी वह दूर नहीं गया था, कि सदमे और आतंक से भर उसे एहसास हुआ कि चट्टान का मुंह तो वो खुला ही छोड़ आया है| जब उसने उसे छोड़ा था, तो गुफा अपने आप बंद नहीं हुई थी|

“बस्ता कोन सिमसिम,” वापिस दौड़ कर उसने चट्टान को आज्ञा दी| गुफा गायब हो गई| राहत की सांस लेता, अली बाबा अपने टट्टुओं के साथ तेज़ी से घर लौट चला|

घर पहुँच कर उसने उन्हें दालान में हाँक दिया, और बाहरी दरवाज़ा अन्दर से बंद कर लिया| ध्यान से, उसने लकड़ियाँ हटायीं और सोने से भरी एक थैली उठा कर अन्दर अपनी पत्नी को दिखाने ले गया।

जब उसकी बीवी ने इतनी सारी सोने की अशर्फियाँ देखीं, तो उसका कलेजा लगभग उछल के उसके मुंह में आ गया| लेकिन जब उसने उसे बताया कि ये सब उसे कैसे मिलीं, तो वह लगभग बेहोश ही हो गई|

अपने सौभाग्य पर आनंदित और उसकी दबंगता पर गर्वित होते, दोनों उत्साहित प्रेमी पक्षियों की तरह चहक रहे थे जब अपने साहसिक कारनामे की गाथा एक बार फिर दोहराते हुए वह जोरू को खुद बाकी थैलियाँ देखने अहाते में बाहर लेकर आया|

मिलकर, उन्होंने अपना कीमती बोझ गधों पर से उतारा और सब कुछ अन्दर ले आये| उसकी बीवी ने जाँच करने के लिए हर थैली खोली और अशरफियाँ अपने आगे उड़ेल कर एक ढेर बनाती चली गई| चमकती धातु की बढ़ती ढेरी देख कर उसकी आँखें चौंधिया रहीं थीं| उसकी पीली चकाचौंध मादक थी|

उसने अपने जीवन में इतना धन पहले कभी नहीं देखा था| ख़ुशी से वह नाच उठी| अंततः जब वह थक गयी, तो ये पता लगाने कि अब वे कितने अमीर हो गए हैं, उसने बैठ कर सोना गिनना शुरू कर दिया|

"ना," अली बाबा ने उसे चेताया। "इसमें तो बहुत वक़्त लग जाएगा| इन्हें गिनने की ज़रूरत भी क्या है? हमें एक गड्ढा खोदना चाहिए और इन्हें तुरंत दबा देना चाहिए ताकि हमारे ज़रा इधर-उधर होने पर ये किसी को मिल न जाएँ|”

"नहीं," वह उत्साह से चहचहाई, “पहले ये जानना ज़रूरी है कि हमारे पास है कितना| हमने छुपाया कितना था| कम से कम गाड़ने से पहले मुझे इसे एक बार तोल तो लेने दो|”

"वह इसे गाड़ना क्यों चाहता है?" नन्हे जोश ने पूछा। "उसे तो ये जल्दी से खर्च कर देना चाहिए।"

"बेवकूफ न बन!" होश ने उसे टोका. “अगर उसने इसे बहुत जल्दी खर्च कर दिया, तो वह फिर से गरीब हो जाएगा| उसे तो ये बैंक लॉकर में डाल देना चाहिए।"

"फारस में तब न बैंक थे, न बैंक लॉकर," रोष ने स्पष्ट किया। "वैसे भी, अगर लोगों को पता चल जाता कि अली बाबा अचानक इतना समृद्ध हो गया है, तो वे सब जानना चाहते कि ये कैसे हुआ| ऐसी ख़बरें जल्दी ही सब तरफ फैल जाती हैं|"

"अगर चालीस चोरों में से किसी को भी ये पता लग जाए कि अलीबाबा अचानक इतना अमीर कैसे हो गया, तो उनसे इसे चुराने के लिए वे उसे आकर मर डालेंगे|”

"लेकिन अली बाबा ने तो लुटेरों से इसे चुराया," जोश ने बहस की। "डाकुओं से चुराना गलत नहीं है!"

"चोरी करना हमेशा गलत है," होश ने जवाब दिया। "डाकू के यहाँ चोरी भी!"

"तो फिर तुमने उस दिन ये क्यों कहा कि रॉबिन हुड एक हीरो था," जोश ने प्रतिवाद किया। "तुम अपनी बात बदलते रहते हो।"


अगली कहानी: अली बाबा और 40 डाकू 03

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