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विज्ञान-कल्प: ठंडा इस्पात - सलीब (Thanda Ispat – Salib)

 

नवीनतम टेक्नोलॉजी से लैस आला कमांडो पहुँचा काली ऊर्जा चुराने|

 

क्या सच के सीरम के खिलाफ प्रशिक्षण संभव है?

पिछली टेलटाउन कहानी: पढ़ें इस किस्से से पहले की कथा: (अभी अप्रकाशित)

“अगर चाहें, तो आप लोग अपने-अपने लड़के का काम देख सकते हैं,” क्लास टीचर (शिक्षक) ने मेज़ों की ओर इशारा करते हुए, क्लास रूम (कक्षा) में बैठे, इंतज़ार करते अभिभावकों से कहा|

“सालाना पेरेंट (जनक) टीचर मीटिंग शुरू करने में अभी देर है, क्योंकि अभी और माता-पिता आने बाकी हैं|”

रोष कक्षा में जोश की जगह पर बैठा हुआ था| मेज़ का ढक्कन खोलकर उसने सबसे ऊपर रखी अभ्यास पुस्तिका उठा ली| वह अंग्रेज़ी की थी|

उसके पन्ने उलटते हुए, उसकी नज़र एक सचित्र कहानी पर पड़ी, जो उसके बेटे ने लिखी थी, और जो कल्पित विज्ञान कथा जैसी लग रही थी| वह उसे पढ़ने लगा:

 

मैं सलीब पर था| धीरे-धीरे फिर एक बार होश में आते हुए, मैंने अपने बदन पर ठंडा इस्पात महसूस किया|

मेरे सिर के भीतर कौंधती चौंधियाहटें मुझे दर्द से अँधा किये दे रही थीं, लेकिन मेरी सालों की ट्रेनिंग ने मुझे अपने विचार फिर से केन्द्रित करके अपनी हालत का जायज़ा लेने पर मजबूर कर दिया|

मैं एक छोटे से खाली कमरे में क़ैद था, जिसकी सफ़ेद नीची छत से रोशनी छन-छन कर आ रही थी| फर्श फाइबर ग्लास का था, और कमरे में अस्पताल जैसी गंध थी|

लगता था मुझे अभी हटाया नहीं गया था, और दुश्मन की बाह्य अंतरिक्ष में स्थित उच्च-तकनीक लैब में ही अभी भी टॉर्चर किया जा रहा था| यह बढ़िया था!

कमरे के भीतर अधर में लटका मैं, क़ैद था, स्टील की ठंडी बेल्टों में बंधा| मेरा नार्कोविश्लेशक प्रश्नकर्ता मेरी बगल में खड़ा था, मेरी ओर मुँह किये|

सच बुलवाने वाला टीका अपनी सिरिंज (इंजेक्शन) में भरते हुए, बेचैनी से वो मेरा मुआयना कर रहा था| मेरी नज़र साफ़ होने लगी – मानो उसपर छाया कोहरा धीरे-धीरे उठ रहा हो|

मैंने एकटक सामने घूरने की कोशिश की, जैसा कि हमें प्रशिक्षित किया गया था, लेकिन मेरी खोपड़ी के अन्दर तूफ़ान उबल रहा था|

ओठों पर सूख कर पपड़ी हो चुके, अपने आँसुओं के नमक का स्वाद चखा मैंने| और मेरे विचार बेतहाशा मेरे उस एक उद्देश्य पर लौट आये, जिसमें मेरे उत्पीड़न के पिछले कुछ घंटों के दौरान भी मेरी जान अटकी हुई थी| मुझे यहाँ से भाग निकलना था|

ये विश्लेषण बाद में होता रहेगा कि कैसे मैं, नवीनतम टेक्नोलॉजी और उपकरणों से लैस एक आला कमांडो, काली ऊर्जा चुरा पाने से पहले ही गिरफ्तार कर लिया गया था| अगर कोई ‘बाद’ अभी बाकी था!

आह भरकर, मुरझा-सा गया मैं| ‘ध्यान दे! वक़्त बीता जा रहा है|’

एक मौके की तलाश थी मुझे| भाग्य की ज़रुरत थी मुझे| मेरे रेटिना पर गुदे अद्रश्य न्यूरो-ट्रांसमीटरों को सक्रिय कर देने का समय आ गया था, पर इसके लिए काफी वक़्त उसने मुझे कभी दिया ही न था|

अपने सवाल पूछते हुए वह लगातार डायल हिलाता रहा था, जिससे मेरी सक्रियण (एक्टिवेशन) प्रक्रिया मानसिक रूप से शुरू करते ही ख़त्म हो जाती थी|

मेरी ढीठ चुप्पी को सज़ा देने के लिए, हर बार जब वह अपना डायल घुमाता, तो मेरा बदन चूमते ठन्डे इस्पात से, चीर देने वाले दर्द की लहर-दर-लहर मेरे दिमाग में दौड़ जाती|

दर्द जब मेरे बर्दाश्त की हद से गुज़र कर कैटाटोनिया बन जाता, तो मुझे होश में वापिस लाने के लिए वह मुझे डोपामिन हार्मोन का इंजेक्शन देता| और पूछताछ फिर शुरू हो जाती| और उसके साथ-साथ, वो चीर डालने वाला दर्द भी|

दर्द- जो ठन्डे इस्पात से बेरोकटोक बह कर मेरी खोपड़ी में चला आता, और मुझे फोकस नहीं करने देता|

मैं लगभग टूट चूका था, लेकिन इससे वो भी चिंतित था| दिमाग खोकर तो मैं उसके सवालों का जवाब नहीं दे सकता था|

मुझे समय तो देना ही पड़ेगा उसे| पर्याप्त समय, कि मैं उसके सवाल समझ सकूँ और उनके जवाब दे सकूँ| मगर इतना कभी नहीं, कि मैं ध्यान केन्द्रित करके अपनी सुरक्षा कर सकूँ|

मगर ये जानने का उसके पास कोई तरीका नहीं था, कि कितना वक़्त मेरे लिए काफी था| वह बड़ी एकाग्रचित्तता से मुझे देख रहा था, अपने विकल्प तोलता|

मैं उसकी दुविधा को अचानक ताड़ गया| यह एहसास बिजली के झटके की तरह मेरे शरीर से जा टकराया, और पलक झपकते ही मुझे प्रेरित कर गया| वह असमंजस में था| यही था मेरा अवसर|

अपना सिर हिलाकर मैंने खुद को संयत करने की कोशिश की और न्यूरो-सक्रियण शुरू किया, पर प्रक्रिया लड़खड़ा गई|

‘सकारात्मक सोच,’ मैंने खुद को सँभालने की कोशिश करते हुए सोचा| ‘अच्छा सोच| कंसन्ट्रेट!’

मेरी बीती ज़िन्दगी मेरे मन के खाली कैनवास पर कौंध गयी|


न्यूरो-सक्रियण शुरू हो गया| एक हल्की मुस्कान मेरे चेहरे पर उभरने लगी|

लेकिन इस बदलाव को उसने भी देखा| एक क्लिक की आवाज़ गूँजी, और ठन्डे स्टील पर उसकी उंगलियाँ फिर से नाच उठीं| मेरे रोंगटे खड़े हो गए, और एक अनैच्छिक झुरझुरी मेरी रीढ़ में दौड़ गयी|

अब खुद पर मंडराते खतरे को महसूस करके परेशान, उसने फिर से अपने सवाल दागे, “हमारी हाई सेक्योरिटी लैब में घुसे कैसे? और कौन-कौन है तुम्हारे साथ? किसके लिए काम करते हो? बोल, कमबख्त!"

समय के खिलाफ उसकी दौड़ शुरू हो गयी थी|

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