2016 के टेक ट्रेंड (2016 Ke Tech Trend) पर बोधकथा|
तकनीकी प्रगति दुनिया भर में क्रांति ला रही थी, पर जिस प्रौद्योगिक प्रगति से रोष सबसे ज़्यादा उत्साहित था, वह थी वर्चुअल रियलिटी (आभासी वास्तविकता)
पिछली कहानी: पैराशूट पैकर
रोष के नव-वर्ष सन्देश भेजते ही जवाब आने शुरू हो गए|
विनीत कर देने वाले उन जवाबों को पढ़ते हुए, उसे अचरच हुआ कि टेक्नोलॉजी की गति में पिछले कुछ सालों में कैसी तेज़ी आ गयी थी, कि आज वो Whatsapp जैसे सामाजिक नेटवर्किंग मंच के माध्यम से अनेक से अनेक के संवाद में तत्क्षण शामिल हो सकता था|
कितनी उपयोगी प्रौद्योगिकी थी ये, लेकिन कितनी विघटनकारी भी| Texting के आने के बाद से, बालक तेज़ी से अपनी शब्दावली खोते जा रहे थे, और किसी भी एक समय में कुछ पैराग्राफ लिखने या पढ़ने की अपनी क्षमता और ध्यान भी|
हर जगह अपने मोबाइल फोन ले जाने, और मैसेज चेक करने लिए घड़ी-घड़ी अपना चलता काम तक छोड़ देने की आदतों से, संचार और आपसी-जुड़ाव में तो तरक्की हुई थी, लेकिन साक्षरता और अंकज्ञान की क़ाबलियत को धक्का पहुँचा था|
भविष्य कल्पनातीत तेज़ी से आ धमका था| कई मोर्चों पर, कईयों के लिए तो, वो इतनी तेज़ी से आया था, कि वे संभल भी नहीं पाए थे| गत कई वर्षों से उसे इसी बात का लगातार एहसास होता आ रहा था, फिर भी हर वर्ष उसे ये बोध अचंभित कर ही देता|
कोडक, ज़ेरॉक्स, और पोलारोइड जैसे नाम उसके ज़ेहन में उतर आये| 1998 में, कोडक दुनिया भर-में एक जाना-माना नाम था| उस समय ये अमेरिका के सबसे बड़े शेयरों में से एक था, 170,000 लोगों को रोज़गार देता था और विश्वभर में बिकने वाले फोटो पेपर का 85% बेचा करता था|
फिर सिर्फ तीन साल में, ये कंपनी दिवालिया हो गयी थी| कोडक क्षण आज भी पकड़े जा रहे थे, पर कोडक फिल्म पर नहीं| डिजिटल कैमरे तो 1975 में ही आ गए थे, लेकिन 1998 में किसने सोचा था कि सिर्फ तीन साल में ही कोई भी फोटो फिल्म पर फोटो नहीं खींच रहा होगा?
नयी सहस्राब्दी में डिजिटल युग सही मायने में आन पहुँचा था| उसके जीवन काल में, उसकी आँखों के सामने ही, डिजिटल स्वचालन (ऑटोमेशन) दुनिया भर पर छा गया था – अगली औद्योगिक क्रांति बनकर|
घातीय (एक्सपोनेंशियल) युग में जन्मा था वह, जिसमें तकनीकी प्रगति मूर के नियम का अनुसरण करती, हर कुछ वर्षों में कंप्यूटिंग खर्च को आधा करती आई थी| फिर भी, घातांक अनंत काल तक तो किया जा नहीं सकता था| उसकी भी गणितीय सीमायें थीं|
फिर भी, इस तेज़ बदलाव, जो पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व की उम्र के मुकाबले कितना ही क्षणभंगुर क्यों न हो, के व्यावहारिक लाभ आम आदमी के जीवन को ऐसा सशक्त और समृद्ध बनाने का वादा रहे थे, जैसा मानव इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ था| और, ऐसा इस महान पैमाने पर हो रहा था जैसा पहले कभी नहीं हुआ था|
आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स, कैशलेस समाज, स्वचालित जैव संवेदन, सेलफोन के माध्यम से स्वास्थ्य निदान, बिजली से चलने वाली स्वायत्त या स्वचलित इलेक्ट्रिक कार, ऑनलाइन शिक्षा, आभासी वास्तविकता, संवर्धित वास्तविकता, अंतरिक्ष यात्रा, स्टेम सेल सफलताओं और 3 डी प्रिंटिग आदि क्षेत्रों में प्रगति के कारण, कई औरों के साथ जल्दी ही वह होने को था, जो कोडक के साथ हुआ था|
पिछले एक दशक में एक ३-डी प्रिंटर की कीमत $ 18,000 से गिरकर $ 400 रह गयी थी| और इसी समय में, वह सौ गुना तेज़ भी हो गया था|
पिछले साल, रोष एक 3 डी प्रिंटर खरीदना चाह रहा था, लेकिन जोश और होश ने उसे उनकी $2,000 की एलसीडी (LCD) LED स्मार्ट टीवी की खरीद के अनुभव का हवाला देते हुए, जो बिलकुल स्मार्ट नहीं निकला था, उस प्रिंटर की खरीद फिलहाल टलवा दी थी| थोड़ा रुको, दोनों ने उसे आगाह किया था।
2012 में, उन्होंने LG का एक 55" पूर्ण HD (1920x1080 पिक्सल), 3 डी, वाई-फाई कुशल, 4 HDMI और 3 यूएसबी (USB) 2.0 पोर्ट वाला एक स्मार्ट TV खरीदा था, जो एक डोंगल के इस्तेमाल से ऑनलाइन जाता तो था, लेकिन घर में VDSL मॉडेम होने के बावजूद शायद ही कभी कोई यूट्यूब वीडियो कुशलता से स्ट्रीम कर पाता था| उसमें 2डी से 3 डी रूपांतरण का अनुभव भी असंतोषजनक था| इसके अलावा, 3 डी ब्लू रे और डीवीडी अभी भी कम और अपेक्षाकृत महंगे थे।
तो, पिछले साल ३ड प्रिंटर की जगह, सिर्फ 200 NZD में, उन्होंने 3 साल की ऑनसाईट वारंटी के साथ वाला एक अच्छा वायरलेस बहुक्रिया (मल्टीफंक्शन) मोनो लेज़र प्रिंटर खरीद लिया था, जो छपाई के अलावा कॉपी, स्कैन और फैक्स भी दो तरफा कर लेता था|
रोष पिछले दस साल से वैसे भी मल्टीफंक्शन लेज़र प्रिंटर का ही इस्तेमाल कर रहा था, लेकिन बेतार टेलीफोनी की तरह बेतार छपाई ने भी जब उसके जीवन को सरल और उसके बहुमंज़िला घर को सुव्यवस्थित बना दिया, तो अपनी खुशी उसने खुलकर ज़ाहिर की|
दिलचस्प बात ये हुई, कि जोश के स्कूल ने भी अपना पहला 3D प्रिंटर पिछले साल ही खरीदा, तो करीब से उसे चलता देख पाने का मौका जोश को मिल ही गया| उसे चलते देख कर जोश कुछ ज़्यादा प्रभावित नहीं हुआ, लेकिन आमतौर पर जोश किसी से जल्दी प्रभावित होता भी नहीं था|
स्कूल के 3-डी प्रिंटर के लिए आवश्यक प्लास्टिक सामग्री वास्तव में सस्ती नहीं थी, और अंत उत्पाद भी बाज़ार से बना-बनाया खरीदने की अपेक्षा महंगा साबित हुआ था। फिर भी, इस नई नवेली तकनीक ने साल भर सभी छात्रों को खूब आकर्षित किया|
तब से अब तक, 3 D क्षेत्र में काफी तरक्की हुई थी| इस साल के अंत तक 3 डी स्कैनर वाले स्मार्टफोन बाज़ार में आ जाने की उम्मीद थी| फिर अपने जूते Puma से खरीदने की बजाये, उदाहरण के लिए, आप खुद घर बैठे-बिठाये अपने पैरों को 3 डी स्कैन करके अपने लिए सही माप के जूते छाप सकोगे| कई प्रमुख जूता निर्माता तो पहले से ही 3 डी प्रिंटिंग से जूते छाप (बना) रहे थे|
अगले दशक के अंत तक, हर उत्पाद का 10% 3डी-मुद्रित होने की उम्मीद थी। चीन में तो उन्होंने पहले ही, 3 डी प्रिंटिंग का उपयोग करके कार्यालयों की एक पूरी की पूरी 6 मंजिला इमारत का निर्माण कर डाला था|
दूर दराज़ के हवाई अड्डों में, हवाई जहाज़ के कुछ भाग भी 3 डी-मुद्रित हो चुके थे| यहाँ तक कि अंतरिक्ष स्टेशन में भी अब एक 3 डी प्रिंटर था, जिससे अंतरिक्ष में बहुत सारे स्पेयर पार्ट्स की संभाल, या उन्हें धरती से वहां भेजने की अब कोई ज़रूरत नहीं रह गयी थी|
फेसबुक का पैटर्न रेकगनिशन सॉफ्टवेयर अब आदमी से बेहतर पहचान लेता था चेहरों को| कृत्रिम बुद्धिमत्ता वाले कंप्यूटरों ने शतरंज के विश्व-विजेताओं, विश्व के गो-चैंपियनों को और दिमागी स्पर्धा जेओपर्डी में अच्छे से अच्छे मानवीय खिलाड़ियों को पहले ही पेल दिया था।
आईबीएम का कंप्यूटर वाटसन, बुनियादी कानूनी सलाह तो तेज़ी और 90% सटीकता से देता ही आया था (युवा अमेरिकी वकीलों की 70% सटीकता के मुकाबले), पर अब अपने बेहतर डेटा खोज, विश्लेषण और समझ-भरे कंप्यूटिंग कौशल के कारण बेहतर मार्गदर्शन और मानव नर्सों के मुकाबले चार गुना अधिक सटीकता से कैंसर का निदान आदि करके, स्वास्थ्य देखभाल और व्यक्तिगत उपचार के क्षेत्र में भी क्रांति ले आया था।
लेकिन जिस प्रौद्योगिक प्रगति से रोष सबसे ज़्यादा उत्साहित था, वह थी वर्चुअल रियलिटी (आभासी वास्तविकता)| यह ज्ञान सीखने-सिखाने में तो क्रांतिकारी बदलाव लाने ही वाली थी, लेकिन रोष के लिए, जो कि एक निडर सैलानी था, आभासी वास्तविकता घर की आरामगाह के अन्दर से ही, आपके स्वास्थ्य की स्थिति की परवाह किए बिना, आपको उन स्थलों की भी एक सुरक्षित सस्ती यात्रा कराने का दम रखती थी, जहां तक कोई आदमी पहले कभी गया ही नहीं|
उसके लिए ये उसका अंतरिक्ष का टिकट थी| उसे आखिरी सरहद पार कराने का माध्यम!
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