अरेबियन नाइट्स किस्से: अली बाबा और 40 डाकू 03 (Ali Baba Aur 40 Daku 03)
कासिम की सयानी बीवी अलीबाबा का भेद जान गई|
दौलत को लेकर भाइयों में छिड़ गई, भरोसा खो गया|
पिछली टेलटाउन कहानी: अली बाबा और 40 डाकू 02
"क्या हो रहा है?" ईशा ने उनके कमरे में प्रवेश करते हुए पूछा|
उसने बर्तन साफ़ कर लिए थे| उन सबको वहां देख कर, वह भी उनकी रजाई में घुस गयी| बाहर कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी|
"पा हमें अलीबाबा और चालीस चोरों की कहानी सुना रहे हैं,” होश ने बड़े जोश से जवाब दिया, “आपको भी सुननी है?”
ईशा ने हामी भरी| होश ने जल्दी से उसे संक्षेप में अब तक की कथा सुनाई| फिर रोष ने आगे कहा:
“अच्छा तोल लो, अगर तोलना ही चाहती हो,” अली बाबा ने बीवी की बात मान ली, “लेकिन किसी से इसके बारे में एक लफ्ज़ भी न कहना|”
उसने सिर हिलाया और तेज़ी से कासिम के घर की ओर रवाना हो गई उनके बाट और तराज़ू मांगने|
"बड़ा तराजू चाहिए या छोटा?” उसकी भाभी ने पूछा।
"छोटा," उसने जवाब दिया, "आज बड़े की ज़रूरत नहीं है।"
"ज़रा ठहरो," उसकी भाभी बोली। "मैं तुम्हारे लिए ढूँढ लाती हूँ|”
'एक लकड़हारे की लुगाई को छोटे तराज़ू की भला किस चीज़ के लिए ज़रूरत हो सकती है,’ कासिम की बीवी ने तराजु ढूँढते हुए सोचा, ‘कटी लकड़ियों के भारी टुकड़े तोलने के लिए तो हो नहीं सकती| अगर आज लकड़ी नहीं तुल रही, तो क्या तुल रहा है?’
कासिम की बीवी जानना भी चाहती थी, लेकिन सीधे-सीधे पूछना भी नहीं चाहती थी, इसलिए उसने बाट-तराज़ू अपनी भाभी को देने से पहले चुपके से निचले पल्ले के नीचे थोड़ी ठोस वसा चिपका दी|
"ठोस वसा क्या होती है?" जोश ने पूछा।
"यह गाय या भेड़ जैसे जानवर के गुर्दे या जाँघ के आसपास से आई कड़ी चिपचिपी चर्बी होती है," रोष ने जवाब दिया|
"कासिम की पत्नी बहुत सयानी थी| उसने ऐसा इस उम्मीद से किया कि अली बाबा और उसकी मेहरारु छोटी तराज़ू से जो कुछ मापेंगे, उसका कोई अंश शायद तराजू वापिस करते वक़्त उस चर्बी में चिपका रह जाए| इस तरह वह पूछे बिना ही जान जाएगी कि उन्होंने इससे क्या तोला था|”
अली बाबा की पत्नी को कोई शक न हुआ| वह तराज़ू घर ले आई और लगी सोने का वज़न करने|
अली बाबा खुदाई में व्यस्त था| जब धन तुल गया, तो बीवी ने सावधानी से उसका एक बड़ा हिस्सा छेद में गाड़ने और मिटटी डाल कर उसे ढकने में उसकी मदद की|
फिर वह अपनी भाभी को तराज़ू लौटा आई, इस बात से बेखबर कि एक अशरफी अभी भी एक पल्ले के नीचे चिपकी रह गयी है|
जब कासिम की बीवी ने सोने का सिक्का देखा, तो वह बावली हो गयी| उस रात कासिम दुकान से जब घर लौटा, तो ईर्ष्या और क्रोध से धधकते हुए उसने उसे पूरी दास्तान सुनाई और सिक्का दिखाया|
"सालों तक हम इनकी मदद करते रहे, ये सोच कर कि ये बिलकुल गरीब हैं,” वह उफनी| “लेकिन ये तो इतने अमीर हैं कि आम आदमी की तरह अपनी दौलत नहीं गिनते| ये तो अपनी अशरफियाँ तोलते हैं| तुम्हारा भाई तो किसी अमीर की तरह दौलतमंद है| और वह हम सब को खूब बेवकूफ बनाता आया है|”
कासिम उस रात सो नहीं सका| लगभग सवेरा होने तक वह करवटें बदलता रहा| जब पहले मुर्गे ने नये दिन का इस्तकबाल करते हुए बांग दी, तो कासिम पहले ही उठ चुका था, और अपने भाई अली बाबा के दरवाज़े पर खड़ा दस्तक दे रहा था|
"सोभ बखैर भाईजान,” अली बाबा ने कहा, हालांकि इतनी सुबह उसे देखकर उसे ताज्जुब हो रहा था|
"क्या उनकी भाषा में सोभ बखैर का मतलब 'गुड मॉर्निंग' है?" जोश ने पूछा।
"एक तरह से," रोष ने जवाब दिया| “और शब बखैर एक तरह से 'गुड नाइट' है। पर्शियन या फारसी भाषा में, शब का मतलब है रात, और खैर का मतलब सलामत रहो या ठीक रहो| रोज़ का मतलब है दिन| तो ‘रोज़ बखैर’ ऐसा हुआ, जैसे आप कहें ‘दिन आप के लिए अच्छा हो’, या 'अल्लाह आपको दिन भर सलामत रखे’|”
जोश ने समझ कर सिर हिलाया। रोष ने अपने अंदाज़ में अरेबियन नाइट्स किस्सा कहना जारी रखा:
"तू तो गरीब और ज़रूरतमंद है, है न अली?" कासिम ने पूछा। वह इधर उधर की बातें करने के मूड में नहीं था।
अली बाबा ने चुपचाप हामी भरी। वह कासिम का मिज़ाज जानता था। कुछ गड़बड़ थी।
"इतना गरीब, कि कुछ वज़न करने के लिए तू खुद की तराज़ू तक नहीं रख सकता|”
अली बाबा चुपचाप कासिम को देखता रहा| और इंतज़ार करता रहा| मुठभेड़ होने को थी| वह हवा में उसे सूंघ सकता था|
"इतना गरीब, तुझे मेरी तराज़ू माँगनी पड़ती है अपना सोना तौलने के लिए?” खुद पर काबू रखने की अपनी कोशिशों के बावजूद कासिम अब कंपकंपा रहा था|
"क्या?" अली बाबा चौंका| "कौनसा सोना?"
कासिम चुपचाप उसे घूर रहा था| लेकिन तेज़ी से बढ़ते हुए गुस्से की वजह से उसका तमतमाया चेहरा लाल हुए जा रहा था और वह थरथराने लगा था|
"मैं समझ नहीं पा रहा हूँ,” अली बाबा ने कमज़ोर-सा प्रतिरोध किया|
"झूठे!" कासिम एक फटते ज्वालामुखी की तरह चिन्घाड़ा और उसने अशरफी अली बाबा के चेहरे पर दे मारी| “जब तेरी बीवी ने कल मेरी तराज़ू लौटाई, तो तेरी ये अशर्फी उसमें चिपकी चली आई|”
“तूने वालिद की विरासत से मेरा हिस्सा लूट लिया| चोरी से उनकी दौलत छिपाता रहा जबकि मैं आज तक यही सोचता रहा कि वे हमारे लिए कुछ नहीं छोड़ कर गुज़रे|”
“मैं वली (अध्यक्ष, गवर्नर, शासक) से तेरी शिकायत करूँगा और तेरी अशर्फियाँ ज़ब्त करवाऊँगा| तू ठहर के देख| तू जेल में सड़ेगा और ज़िल्लत की मौत मरेगा| मैं बदला ले के रहूँगा|”
अली बाबा को एहसास हो गया कि अब बहस करना या अपने धन के बारे में झूठ बोलना बेकार है| बजाय इसके कि वह उसके मलाल और बतंगड़ को और बढ़ाए, उसने फैसला किया कि वह भाई को अपना राज़ बता देगा| लेकिन भरोसा एक बार खो जाता है, तो दोबारा जल्दी नहीं मिलता|
अपने भाई के डाकुओं और जादुई गुफा के साथ हुए असाधारण अनुभव को सुनने के बावजूद, कासिम का शक गया नहीं|
"साबित कर!" वह फुफकारा| “बता मुझे कि ये गुफा कहाँ है? जादुई पासवर्ड क्या है? मैं जा कर खुद चेक करूँगा| और अगर तूने झूठ बोला है, तो मैं सीधा वली के पास जाऊँगा|"
तो अली बाबा को मजबूरन उसे थल चिन्ह, जादुई जुमले जिनसे चट्टान का मुंह खुलता और बंद होता था, और खज़ाने में क्या-क्या है, ये सब तफसील से बताने पड़े| कासिम ने सुना ध्यान से, मगर असल में उसे अली बाबा पर विश्वास हुआ नहीं|
"तुझे लगता है कि मैं बच्चा हूँ," वह गुर्राया| “इन जादू की कहानियों से तू मुझे बेवकूफ नहीं बना सकता| अपनी वारिसी धोखाधड़ी को छिपाने के लिए कैसा मुकम्मल झूठ पकाया है|"
"तो परख ही लो खुद,” अली बाबा के कहा| “और इतनी ज़ोर से चिल्लाना बंद करो। मुर्दों को जगा दोगे तुम| फिर, उन तक को खज़ाने का पता चल जाएगा।"
कासिम चुप हो गया| बहुत देर तक चुपचाप अली बाबा को वो घूरता रहा| फिर वह लौट गया|
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