अरेबियन नाइट्स किस्से: अली बाबा और 40 डाकू 16 (Ali Baba Aur 40 Daku 16)
मरजीना डाकुओं के लिए तेल बूटियों से बनाती है एक घातक कॉकटेल, जिसका होश करता है पर्दाफाश...
पिछली कहानी: अली बाबा और 40 डाकू 15
"फिर, मरजीना तेज़ी से आँगन में बाहर चली आई,” रोष ने अरेबियन नाइट्स किस्से को आगे बढ़ाते हुए कहा, “जहाँ उसने एक कोने में उगे कुछ भांग के पौधे उखाड़े| उन्हें जितना मसल सकती थी वह, मसल लिया|”
“उसने कुछ धतूरा के फल भी तोड़े| वह जानती थी कि अब्दुल्ला इन पौधों का क्या इस्तेमाल करता था| ये सब लेकर वह तेज़ी से रसोई में वापिस लौटी|”
“तेल गर्म हो रहा था| वह जानती थी कि उसके पास ज्यादा समय नहीं है| जो भी करना था, तेल के धुआँने और आग पकड़ लेने से पहले ही करना था|”
“देग के नीचे जलते लकड़ी के लट्ठों को, फिर से फटाफट हवा झलने के बाद, उसने कुचले हुए भांग के पौधे और धतूरा के फल आग के पास एक कोने में डाल दिए| वह उन्हें धुआँना चाहती थी, मगर एकदम जला कर खत्म नहीं करना चाहती थी|”
"फिर हैंडल वाला बड़ा पतीला जो उसने तेल उड़ेलने के लिए इस्तेमाल किया था, उसे उठा और शेल्फ से मलमल के दो टुकड़े नीचे खींच, वह चुपचाप रसोई से बाहर दौड़ गयी, और रसोई का दरवाज़ा बाहर निकल कर बंद कर दिया|”
“बरामदे की ताज़ा, ठण्डी, रात की हवा में, उसने एक मलमल का कपड़ा अपनी नाक पर बाँधा और दूसरा बर्तन के हैंडल पर| फिर, उसने इंतज़ार किया|”
“वो भांग के पौधों और धतूरा के फलों से धुआँ क्यों निकाल रही थी, पा?” जोश ने दोबारा रजाई के नीचे से झाँकते हुए, हैरानी से पूछा| “ताकि डाकू धुएँ से साँस घुट के मर जाएँ?”
“नहीं,” पिता की जगह होश ने जवाब दिया| “अगर भांग की जिस किस्म का पौधा उसने इस्तेमाल किया है, वह गाँजा (मारुआना) है, तो वह उन्हें बेहोश कर देगा| और अगर नहीं है, तो भी भरपूर ऑक्सीजन न मिलने से, दम घुट कर उन्हें अनॉक्सिता हो जाएगा|”
“भांग के सुलगते रेशों, फूलों, कलियों और बीजों से उठती महीन भाप पूरे किचन में, और उसके अन्दर वाली कोठरी में फैल जायेगी|”
“खूनियों को निर्देश है कि वे सरदार के इशारे का इंतज़ार करें| जब तक वह आकर उन्हें आज़ाद नहीं करता, तब तक वे हिल भी नहीं सकते| वे तंग बैरलों में छुपे बैठे हैं, जिनमें हवा के लिए बस छोटे-छोटे छेद हैं| और मरजीना ने रसोई घर को गांजे की भाप से भरने के लिए, ताज़ी हवा की सप्लाई (आपूर्ति) काटने, दरवाज़ा भेड़ दिया है|”
“तो अब वे बेखबरे, इस भाप की भारी मात्रा सूँघ रहे हैं, जिससे वे संज्ञाहीन (संवेदन हीन) हो जायेंगे| धतूरे के फलों का धुआं भी कम-से-कम मति भ्रम (भ्रांत) तो करेगा ही| धुएँ की ज़्यादा ख़ुराक उन सबके लिए घातक भी हो सकती है|”
“इस बीच, आग पर तेल गर्म हो रहा है| दड़बों के भिंचे मुर्गों ने अगर फौरन कोई कदम न उठाया, तो अपने ही तेल में वे सब कब पक जायेंगे, उन्हें पता भी नहीं लगेगा| मौत करीब आती जा रही है| खामोश पँखों पर|”
रोष को अपने बड़े बेटे के ज्ञान और विचार कौशल पर गर्व हुआ| तर्क से होश ने समझ ली थी मरजीना की भोली दिखने वाली हरकतों की जानलेवा अहमियत (महत्व)|
“मैं तुम्हें पहले बता ही चुका हूँ,” होश कह रहा था, “कि थर्ड-डिग्री के जले पीड़ा रहित होते हैं क्योंकि हमारा सबसे बड़ा संवेदनशील अंग, त्वचा, इसमें पूरी तरह नष्ट हो जाता है| गांजे के धुएं जैसी बेहोशी की दवाएँ, और धतूरे के धुएँ जैसे बावला कर देने वाले पदार्थ, लुटेरों को बेहोश करके उनका दर्द और भी कम कर देने वाले हैं|”
“इसका मतलब कि उनकी कुछ या सभी इन्द्रियाँ, खासतौर पर स्पर्श, काम करना बंद कर देंगी, या कम काम करेंगी| तो, जब खौलता गर्म तेल उनपर उड़ेला जाएगा, तो उन्हें यह महसूस तक नहीं होगा, चिल्ला कर दूसरों को खबरदार करने की तो बात ही क्या है|”
“200+ डिग्री सेल्सियस वाला सरसों का तेल, जो कि उस तापमान से दुगने से भी ज़्यादा है जिसपर पानी उबल जाता है, जब उनपर गिरेगा तो उन्हें तीसरे, चौथे, पाँचवें और छठे डिग्री के जले (बर्न) देकर जाएगा|”
“वे घातक रूप से जल रहे होंगे, लेकिन इसका उन्हें एहसास तक नहीं होगा| इस स्तर के जले बहुत कम दर्द करते हैं, या बिल्कुल दर्द नहीं करते, क्योंकि चमड़ी की तंत्रिकाओं और ऊतकों को बहुत नुकसान पहुँचा हुआ होता है|”
“एक बार त्वचा और मांसपेशियाँ चली जाएँ, तो शरीर के अंदरूनी अंगों को उनकी जगह सहारा देने के लिए कुछ नहीं बचता| ये बाहर गिरना शुरू हो सकते हैं, और तुरंत जल सकते हैं या संक्रमित हो सकते हैं|”
“तेल जली हुई स्किन पर तपिश को क़ैद करने का काम भी करता है| तो जब तक कि वे परी लोक की सैर पर निकले हुए हैं, तेल उनके मांस को वैसे ही लीलता रहेगा जैसे खुद लपट ही हो| याद है, पा ने पहले हमें बताकर कैसे सुराग दिया था, कि जोटापाटा की लड़ाई में तेल ने दुश्मन को कैसे नेस्तनाबूद किया|”
“क्या वे शब्द एक इशारा (क्लू) थे?” जोश अब पूरे जोश में था, और हर वो बात याद करने की कोशिश कर रहा था जो उसके पिता ने पहले कही हो|
“खौलता गर्म तेल,” होश ने कहना जारी रखा, “जब सिर से पाँव तक पूरे बदन पर, आसानी से कपड़ों के अन्दर से बहता हुआ, बैरल की तली में तलवों और पैरों के पास जमा होगा, तब भी गहरी मार करेगा|”
“ढक्कन में छेदों को छोड़कर, वे एक एयरटाइट (वायुरुद्ध) बैरल में बैठे हैं| मतलब खौलता तेल ऊपर से अन्दर तो जा सकता है, पर नीचे से बाहर नहीं आ सकता| अगर इस खौलते गर्म तेल में वे भीगते बैठे रहे, तो लड़ने की ताकत तो कुछ ही समय में उन्हें छोड़ जायेगी|”
“लेकिन” ईशा ने आपत्ति की, “जब मरजीना हर ढक्कन पर पतीला-भर तेल उड़ेलेगी और तेल तुरंत उसके सारे हवा छिद्रों को बंद कर देगा, तो तेल उन छोटे-छोटे छेदों से अन्दर जाएगा ही नहीं|”
“पॉइंट अच्छा है,” होश ने समर्थन किया| “मरजीना को खौलता तेल लकड़ी के ढक्कन पर डालते वक़्त, कम-से-कम एक छेद तो खुला रखना ही होगा| एक खुला छेद भी काफी होगा, बैरल के अन्दर और बाहर की हवा का प्रेशर बराबर रखने के लिए|”
"फिर तेल लकड़ी के ढक्कनों के हवा छिद्रों से तेज़ी से नीचे बह निकलेगा, और तेल की बैरलों में छिपे बेहोश डाकुओं को फटाफट झुलसा देगा| इसीलिए कांच की बोतलों पर भी जब जोर से कसे ढक्कन खुलते नहीं हैं, तो उन्हें खोलने के लिए हम कभी-कभी उनके ढक्कन में एक छेद कर देते हैं| जिससे अन्दर फंसी हवा का दबाव ख़त्म हो जाता है|”
"विचार दिलचस्प है,” रोष ने उन्हें ठीक करते हुए कहा| “लेकिन हवा हमेशा ज्यादा दबाव वाले इलाके से कम दबाव वाले इलाके की ओर चलती है| इसके अलावा, गुरुत्वाकर्षण भी है और ये तथ्य भी, कि बैरल के अन्दर भरी हवा की तुलना में तेल ज्यादा सघन होता है|”
“तो, बैरल कवर के सारे हवा छिद्रों के तेल से ढक जाने के बाद भी, सभी छेदों में से तेल फिर भी अन्दर बहते रहना चाहिए| अगर, जैसा कि होश ने नोट किया, कम-से-कम एक छेद खुला रखा जा सके, तो तेल हवा छिद्रों में से पहले की अपेक्षा ज्यादा तेज़ी से गिरेगा|”
“अपने शिक्षक की अनुमति से अपनी विज्ञान प्रयोगशाला में अगली बार ये प्रयोग करना, एक टेस्ट-ट्यूब के बीचो-बीच कॉर्क फंसाकर, कोर्क में कुछ छेद करके, फिर उस टेस्ट ट्यूब के कार्क पर तेल डालकर देखना|”
“अगर ढके हवा-छिद्रों से तेल नीचे न भी बहा,” होश ने जोड़ा, “तो भी अन्दर पड़े बेहोश या मति-भ्रमित डाकू की एयर सप्लाई तो कट ही जायेगी, जिसकी वजह से दम घुटने से वह मर जाएगा| धुएँ के नशे में धुत, उसके पास न इतनी ताकत बचेगी न मनोबल, कि वह ऊपर से तेल ही हटा सके या बैरल के ढक्कन अन्दर से तोड़ सके|”
“पा,” उनकी तार्किक बहस से तंग आकर, जोश कराह उठा, “अब अपना तेल डाल ले क्या वो?”
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