Ghostअसुर गुरु शुक्राचार्य संजीवनी विद्या (Sanjivani Vidya) जानते थे| मृत संजीवनी मंत्र, जिससे मुर्दे फिर जी उठें|

 

देवयानी के लिए मृत कच को बार-बार पुनर्जीवित करने की हिंदू पौराणिक कथा

पिछली टेलटाउन कहानी: दुर्वासाओं को संभालें कैसे?

“फिर क्या हुआ?” जोश ने पूछा|

“हारे देव अपनी दुर्दशा और बदनामी से मुक्ति पाने के लिए विष्णु के पास गए,” रोष ने आगे कहा|

“विष्णु ने समुद्रमंथन का सुझाव दिया – क्षीरसागर का मंथन, अमृत निकालने के लिए, जिसे पीकर अमरत्व हासिल हो जाता है| सागर और समुद्र, दोनों ही संस्कृत के शब्द हैं, पर्यायवाची|”

“एक बार देव अमृत पी लें, तो वे अमर हो जायेंगे| और अमर को कौन हरा सकेगा?”

“लेकिन समुद्र, पानी की ऐसी विशालकाय जल राशि, इसका मन्थन कैसे हो? फैसला हुआ कि मन्दराचल, यानि मंदर पर्वत को मथनी बनाया जाएगा| मंथन रस्सी के लिए चुनाव हुआ नागराज वासुकी का, जो शिव के कन्धे पर विराजते हैं|”

“लेकिन देव तो इतने ताकतवर रह नहीं गए थे, कि ये काम अब अकेले कर सकें| तो उन्होंने अपने पारंपरिक शत्रुओं, दानवों, यानि दैत्यों से उनकी जन शक्ति का उपयोग करने के लिए संधि कर ली|”

"आपका मतलब महाशक्ति,” जोश ने टोका|

“बिल्कुल!” रोष ने सहमति व्यक्त की| “और इसमें सम्मिलित थे वो सारे संसाधन जिनके अब दानव मालिक बन चुके थे| उनकी टेक्नोलोजी, उनकी जानकारी| उनके यन्त्र, उनके लोग|”

“लेकिन फिर तो दानव भी अमृत लेना चाहेंगे, नहीं?” जोश ने आपत्ति की| “मेरा मतलब, वो अपने दुश्मन की मुफ्त में मदद क्यों करेंगे? और अगर उन्होंने अमृत पा लिया, तो वे भी अमरता पा जायेंगे! तब तो, गयी भैंस पानी में| कमज़ोर अमर लड़ रहे होंगे खूँखार अमर से| देवताओं की फिर बुरी तरह धुलाई होगी|”

“दुरुस्तम!” रोष अपने नन्हे बेटे के चातुर्य पर दमक उठा| “तो, विष्णु ने देवों को आश्वासन दिया कि वो ऐसा होने नहीं देंगे, और देवताओं को ही अमृत पीने को मिलेगा| लेकिन इस समस्या को सुलझाने के लिए उन्होंने क्या किया, और उसमें वे सफल हुए भी कि नहीं, ये मैं तुम्हें तब बताऊंगा, जब मैं कहानी के उस हिस्से तक आऊँगा|”

जोश ने आपेक्षा में चुपचाप सिर हिला दिया, लेकिन उसकी कल्पना अब पूरी तरह भभक उठी थी|

“मंथन जब शुरू हुआ,” रोष ने आगे कहा, “तो बेधन बल इतना ज़बरदस्त बना, कि वो महान पहाड़ सागर तल में धंसते हुए ड्रिलिंग करने वालों को अपने साथ नीचे ले चला|”

“दैत्याकार सर्प वासुकि किसी चोक इंजन की तरह ज़हरीला धुंआ छोड़ रहा था, और दर्द से तड़पता, अपने सर के निकटतम राक्षसों को बीच-बीच में ठोके भी जा रहा था| समुद्र मंथन के लिए, उसके सर की तरफ से, असुर उसका शरीर खींच रहे थे न|”

“उस तरफ से अकेले खींचने के लिए असुर मान क्यों गए?” जोश ने पूछा| “बारी-बारी से उन्होंने सुरों के साथ पाला क्यों नहीं बदला? या फिर वे मिली-जुली टीमें बनाते – जिनमें सांप के शरीर के दोनों किनारों पर, दोनों पक्षों के मेंबर बराबर होते?”

“अच्छे सवाल हैं फिर से,” रोष मुस्कराया| “मैं तथ्यों के आधार पर तो बता नहीं सकता, क्योंकि तब तो मैं वहाँ था नहीं – उनके समझौते के वक्त|”

“लेकिन अनुमान लगाऊँ, तो शुरू में शायद कोई भी नहीं, वासुकि भी नहीं, जानता रहा होगा कि आगे क्या होने की उम्मीद है| तो, कौन किस साइड से मथेगा, ये तो मुद्दा भी शुरू में शायद रहा न होगा|”

“लेकिन जैसा कि कोई भी अच्छा खनिक तुम्हें बताएगा, कभी-कभी क्षति नियंत्रण तुरत-फुरत भी करना पड़ जाता है, क्योंकि आप ड्रिलिंग अचानक रोक भी नहीं सकते| तो अब साइड बदलने की बजाय, उन्हें पहाड़ को डूबने से रोकने के लिए एक भरोसेमंद निहाई की ज़रूरत थी| और वो भी तुरंत|”

नाग के मुख की तरफ से उसका शरीर खिचवाना मुझे तो नाहक संयोग नहीं लगता,” ईशा रोष के टालू जवाब से खुश नहीं थी| उसने अपने बेटे की आपत्ति का समर्थन करने का फैसला किया|

“लगती तो ये देवों की आम कुटिलता ही है| फिर भी, देवों की अपने शत्रुओं को कमज़ोर करने की इच्छा तो समझ में आती है, पर राक्षसों को कैसे उनकी योजना समझ में नहीं आई? उस समय देवों से भी अधिक शक्तिशाली होने के बावजूद, क्या वे भी दूरदर्शिता से वंचित ही थे?”

“उस समय तक देव इतने कमज़ोर हो चुके थे,” रोष ने तर्क दिया, “और संख्या में इतने कम, कि दोनों पक्षों को ये आभास हो ही गया होगा कि सर्पमुख पक्ष में खींचने आकर देव न अकेले संभाल पाएँगे, न जी पायेंगे|”

“तो शायद, ये एक पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समझौता रहा हो, जिसके आधार पर सागर मंथन से निकले माल का बाद में बटवारा होना हो|”

“सनद रहे, कि असुर गुरु शुक्राचार्य संजीवनी विद्या, यानि मृतकों को जीवित करना, जानते थे| मृत संजीवनी मंत्र, मृतक पुनरुत्थान का सूत्र, जिससे मुर्दे फिर जी उठें| जिसका शिक्षक मरे को ज़िन्दा करना जानता हो, और जिसके पुनर्जीवन की गारंटी हो, उस पुनर्जीवित होने वाले को मौत का डर कैसा?”

"सच?" जोश चकित था। "वे मुर्दा जिला सकते थे!"

"हाँ," रोष ने सिर हिलाया। "उन्हें न सिर्फ संजीवनी विद्या का ज्ञान ही था, बल्कि युद्ध में मारे गए दैत्यों को इसका इस्तेमाल करके, फिर से जीवित कर देने में उन्हें कोई परहेज़ भी नहीं था| तो असुराचार्य की वजह से असुर पलड़ा तो पहले ही भारी था, जिसकी वजह से भी असुर शायद देवताओं पर इतने लम्बे समय तक भारी पड़ते रहे हों|”

"हिंदू ज्योतिष ग्रंथों में नवग्रह, यानि नौ ग्रहों का ज़िक्र है, हालांकि असल में ये नवगृह सिर्फ ग्रह नहीं| हिन्दू नवग्रह गिनती में सूर्य, चन्द्र, राहु और केतु भी हैं, जिन्हें वर्तमान विज्ञान गृह नहीं मानता| इससे पहले कि तुम भारतीय ज्योतिष का मज़ाक बनाने लगो, जान लो कि ग्रहों की वैज्ञानिक परिभाषा भी बदलती रहती है| मसलन 1950 से पहले खोजे गए नौ ग्रह निकायों में से आज आठ को ही गृह माना जाता है| प्लूटो (वरुण-पार खोजी गयी पहली चीज़) को अब गृह नहीं माना जाता।"

"खैर, हिंदू पौराणिक कथाओं में, दैत्याचार्य शुक्र को दर्शाता है शुक्र ग्रह, यानि वीनस, जो हमारे अँधेरे आसमान में चंद्रमा के बाद दूसरी सबसे अधिक चमकने वाली प्राकृतिक खगोलीय वस्तु है, और देवाचार्य बृहस्पति को दर्शाता है ब्रहस्पति ग्रह, या जुपिटर, जो हमारे सौर मण्डल का सबसे बड़ा ग्रह है।"

"बृहस्पति सुरों के गुरु थे, पर संजीवनी विद्या वे नहीं जानते थे| महाभारत, मत्स्य पुराण और अग्निपुराण, बृहस्पति के बेटे, ऋषि कच की कहानी कहते हैं, कि कैसे देवताओं ने उन्हें शुक्राचार्य के पास शास्त्रों के साथ-साथ संजीवनी विद्या जैसे जादुई तंत्र सीखने को भेजा, ताकि समय आने पर दानवों के खिलाफ युद्धों में मारे जाने वाले देवों को फिर से जीवित किया जा सके|”

"शुक्राचार्य ने कच का टेस्ट लिया और उन्हें अपना शिष्य बना लिया| कच एक आज्ञाकारी, शिष्ट, और खूब मेहनती छात्र थे| उन्होंने न सिर्फ अपने गुरु का प्यार और वफादारी जीत ली, बल्कि अनजाने में शुक्राचार्य की बिटिया देवयानी के दिल दिमाग पर भी कब्ज़ा कर लिया|”

“असुरों ने उनका चढ़ता सितारा देखा, तो भविष्य में उनके संजीवनी विद्या सीखने के संभावित परिणामों से घबरा कर, दूरंदेशी से मामला अभी का अभी निपटा देने का फैसला कर लिया|”

“उन्होंने कच को मार डाला| लेकिन शुक्राचार्य ने मृत सन्जीवनी मन्त्र का इस्तेमाल करके अपने पसंदीदा चेले और देवयानी के प्यार को पुनर्जन्म दे डाला|”

“तो असुरों ने उन्हें दोबारा मार दिया, और उनकी लाश छिपा दी| शुक्राचार्य ने वो ढूँढ निकाली और उन्हें फिर से जिंदा कर दिया| असुरों ने तब कच को तीसरी बार मार गिराया|”

“इस बार उन्होंने उनके मृत शरीर को जला दिया, राख शराब में मिलायी, और वो शराब शुक्राचार्य को पिला दी| इस सब से बेखबर, शुक्राचार्य वो शराब पी गए| अब कच का शरीर कभी पाया नहीं जा सकता था| कच का हर निशाँ अब हमेशा के लिए मिटा दिया गया था|”

“जब कच कई दिनों तक नहीं दिखे, तो देवयानी बावली हो गयी| शुक्राचार्य को भी दाल में कुछ काला लगा, तो उन्होंने उन्हें पुनर्जीवित करने की कोशिश की|”

“जब जीवन उमड़ता घुमड़ता, उनके अपने शरीर में ही आकार लेने लगा, तब झटके के साथ उन्हें अंदेशा हुआ कि जो शराब उन्होंने पी थी, उसी में कच की अस्थियाँ घुली रही होंगीं|”

“अब बड़ी मुश्किल में फंस गए वो| कच के जिंदा होने के लिए, उन्हें खुद मरना पड़ेगा| और अगर कच को उन्होंने ज़िन्दा नहीं किया, तो उसके प्यार में पागल देवयानी, उसके मरने का सदमा बर्दाश्त न कर पाने की वजह से जी नहीं पायेगी|”

“इश्क और आई पर ज़ोर नहीं,” ईशा ने चुटकी ली, “है ये वह आतिश ग़ालिब| कि लगाये न लगे और रोके न बने| फंस गए बेचारे, नहीं?”

“खोज लिया शुक्राचार्य ने तरीका,” रोष शब्दों से खेलती ईशा पर मुस्कराया, और ये कहानी ख़त्म करते हुए बोला, “उन्होंने कच को संजीवनी विद्या सिखा दी| कच अपने गुरु का शरीर चीर कर, फिर ज़िन्दों की दुनिया में लौट आया| और फिर उसने अपने ज्ञान का उपयोग करके, अपने मृत गुरु को भी पुनर्जीवित कर लिया|”

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