बोधकथा: कोई दोस्त है न रकीब है (Koi Dost Hai Na Rakib)
- जगजीत सिंह की गाई, राणा सहरी की गज़ल के तर्जुमा के साथ, और
- सचिन लिमये की गाई ‘न सुबूत है’ के अनुवाद व मतलब के साथ
पिछली टेलटाउन कहानी: पढ़ें इस किस्से से पहले की कथा: (अभी अप्रकाशित)
रोष अपने बगीचे में अकेला बैठा, आसमान से उतरते सूरज का एकाकी सफ़र निहार रहा था|
“अकेले क्यों बैठे हो यहाँ?” ईशा ने पीछे से उसका कन्धा थपथपाया| रोष को यहाँ देख, वह भी टहल कर बाहर उसके पास होने चली आई थी| जोश भी उसे देख, अपनी माँ के पीछे-पीछे बाहर आ गया|
“क्योंकि तन्हा महसूस कर रहा हूँ,” रोष ने जवाब दिया| “जीवन की शाम में उतरते, एकाकीपन नियति सा लगने लगा है| बार-बार राणा सहरी के अल्फाज़ ज़ेहन में गूँज उठते है, जिन्हें जगजीत सिंह की रूहानी गायकी ने अमर कर दिया:”
कोई दोस्त है न रकीब है, तेरा शहर कितना अजीब है
“हिंदी में क्या मतलब हुआ इसका?” जोश ने पूछा|
“रकीब का यहाँ मतलब है दुश्मन,” रोष ने कहा| “तो पहले शेर का मतलब हुआ: न कोई दोस्त है यहाँ, न दुश्मन| कैसा अजीब शहर है?”
“इसमें अजीब क्या है?” जोश ने फिर पूछा|
रोष मुस्कराया।
“किसी से प्यार या नफरत करने के लिए,” उसने जवाब दिया, “उसे उतने करीब से जानना तो पड़ता है| शायर कह रहा है कि वह खुद को अजनबी-सा महसूस करता है इस दुनिया में, जहाँ लगता ही नहीं कि किसी को किसी की कोई परवाह है|”
वो जो इश्क था वो जुनून था, यह जो हिज्र है, ये नसीब है
"इश्क का मतलब है प्यार, जुनून है पागलपन, हिज्र है बिछड़ना या जुदाई, और नसीब का मतलब है भाग्य| तो दूसरे शेर का हिन्दी में मतलब हुआ: इश्क एक भूत है| उतरता है, तो किस्मत में अलगाव छोड़ जाता है|”
“सरल शब्दों में क्या मतलब हुआ इसका?” जोश ने फिर पूछा|
“हम जीवन में कई पागलपनों के पीछे दौड़ते हैं,” रोष ने समझाया, “लेकिन कितनी भी सरगर्मी रहे उनमें जब तक वे रहते हैं, वे हमेशा नहीं रहते| तमाशे खत्म हो जाते हैं, जीवन चलता रहता है|”
यहाँ किसका चेहरा पढ़ा करूँ, यहाँ कौन इतना करीब है
“इस तीसरे शेर का तर्जुमा ये है कि किसी का चेहरा ताकते ज़िन्दगी बसर की जा सके, उसके लिए इतनी नज़दीकी तो होनी चाहिए कि उसका चेहरा दिखाई तो दे|”
“याने?” जोश ने पूछा|
“मुद्दा है अकेलापन,” रोष ने जवाब दिया| “तुम्हारी दुनिया में अकेला महसूस कर रहा हूँ मैं, राणा कहता है| यहाँ कोई इतना पास नहीं कि मैं उसका चेहरा निहार सकूँ| आदमी भीड़ में अकेला हो सकता है| लोग दिखाई देते हैं, पर हैं तुमसे इतनी दूर कि कुछ देख नहीं सकते तुम| इशारा रिश्तों में दूरियों की तरफ है| अपनापन नहीं है|”
“निराशाजनक है ये| और तुम कुछ कर भी नहीं सकते इसके बारे में| राणा कहता है:”
मैं किसे कहूँ, मेरे साथ चल, यहाँ सब के सर पे सलीब है
“सलीब माने क्रॉस – वैसा जैसा ईसा मसीह को ढोना पड़ा| तो, इस शेर का अनुवाद हुआ: सबके सिर पे अपने-अपने सलीब हैं, तो अपने साथ चलने को किस से कहूँ|”
“उनका मतलब कि हम सबको एक दिन मरना है?” जोश ने पूछा| “तो, हमारे अंत तक हमारे साथ कोई नहीं जा पायेगा| या कि हम पहले ही मर चुके हैं, क्योंकि सबके सर पर क्रौस है - जैसा ईसाई कब्रिस्तान में होता है?”
“यहाँ सलीब ढोने का मतलब है,” रोष ने सिर हिलाया, “बोझ उठाना| सूली पर चढ़ाये जाने से पहले यीशू को अपना सलीब (भारी-भरकम) ढो कर ले जाना पड़ा| बाद में, उन्हें उसी सलीब पर कीलें ठोक कर सूली चढ़ा दिया गया|”
“वाया डोलोरोसा, जेरुस्लम के पुराने शहर की वो सड़क, जिसपर सूली चढ़ाये जाने से पहले ईसा को अपना सलीब ढोकर चलना पड़ा, लेटिन भाषा का शब्द है, जिसका मतलब है ‘गम का रास्ता,’ ‘दुःख का पथ,’ ‘पीड़ा का मार्ग,’ या बस ‘दर्दनाक राह’| जीवन भी कुछ ऐसा ही है, कुछ लोगों के लिए|”
“तो, मेरे ख़याल से, सलीब या क्रॉस, ज़िम्मेदारियों के लिए एक रूपक (metaphor) है यहाँ| दूसरे शब्दों में, शायर कह रहा है कि अपने-अपने काम में सब इतने व्यस्त हैं यहाँ, कि किसी दूसरे के लिए उनके पास वक्त ही नहीं|”
“लेकिन सिर्फ ये अकेलापन नहीं, जो उसे कुचल रहा है| ये एहसास कि जब लोग सपनों के पीछे भागते हैं, या अपने वजूद की लड़ाई में मौकापरस्त (अवसरवादी) बन जाते हैं, तो आहूति रिश्तों की चढ़ती है|”
तुझे देख कर मैं हूँ सोचता, तू हबीब है या रकीब है
"हबीब माने दोस्त| तो आखिरी शेर का मतलब है: तुझे देखकर मैं ये फैसला नहीं कर पाता कि तू दोस्त है या दुश्मन|”
“लोग मुखौटों के पीछे छुपे हैं| अंदाज़ा लगाना मुश्किल हो गया है कि उनकी वफादारी कहाँ है| तो, नगमा निगार को अब ये भरोसा तक नहीं कि कोई उसका यार है अभी, या दुश्मन हो गया है...”
“वह गलत जगह तलाश कर रहा है,” ईशा ने रोष को टोका| “एक सच्चा मित्र हर किसी का होता है! ज़रूरत सिर्फ सही जगह पर ढूँढने की है| वह अकेला नहीं| कभी था ही नहीं...”
न सुबूत है, न दलील है, मेरे साथ रब्बे-जलील है
“न प्रमाण है कोई, न तर्क है, पर वो गौरवशाली परमात्मा साथ है मेरे|”
तेरी रहमतों में कमी नहीं, मेरे एहतियात में ढील है
“उसकी कृपा में कोई कमी नहीं, मैं बस संभाल ही नहीं पा रहा|”
मुझे कौन तुझसे अलग करे, मैं अटूट प्यास, तू झील है
“मैं अनन्त प्यास, तू तृप्त करने वाली धारा, मुझे कैसे कोई तुझसे अलग कर पायेगा|”
तेरा नाम कितना है मुक्तसर, तेरा ज़िक्र कितना तवील है
“तेरा नाम कितना छोटा है, और दर्शन कितना बड़ा...”
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