घोड़ा और बकरी (Ghoda Aur Bakri) का मज़ेदार किस्सा बिज़नेस मैनेजमेंट जगत का एक दिलचस्प, बोधप्रद सबक देता है|
कॉर्पोरेट दुनिया में बचे रहना है, तो अपने आकाओं को ...
पिछली कहानी: पढ़ें इस किस्से से पहले की कथा: (अभी अप्रकाशित)
एक नए प्रोजेक्ट की ब्रीफिंग में रोष ने अपने एक ठेकेदार को असामान्य रूप से शान्त देखा|
“तुम ठीक हो?” चाय के विश्राम के दौरान रोष उस तक आ पहुँचा|
"ज़िन्दगी कुतिया है,” ठेकेदार ने निराशा से सिर हिलाते हुए कहा|
“मेरे नए अपरेंटिस की नौकरी जाने वाली थी, क्योंकि वह अपने काम की ज़िम्मेदारियाँ ठीक से पकड़ ही नहीं पा रहा था| उसके सारे सहयोगी और बॉस मज़ाक उड़ा रहे थे उसका| बेचारे पर मुझे तरस आ गया|”
“अगर तुमसे कभी कोई कहे, मैंने उसे बताया, कि तुम्हारा काम पेशेवर नहीं, तो याद रखना बेड़ा नातजुर्बेकारों ने बनाया था (जिसने सारी नस्लें बचाईं), और टाइटैनिक पेशेवरों ने (जिसमें सभी बुरी तरह मारे गए)|”
“रहम करके, अपने खाली समय में मैं उसे ट्रेन (प्रशिक्षित) भी करने लगा| किसी को ये सब बताया भी नहीं, ताकि जितनी खिंचाई उसकी पहले से ही हो रही है, उससे और ज़्यादा न हो|”
“अफसोस, कि मैंने काम उसे इतना अच्छा सिखाया, कि मेरे ही सबसे बड़े ग्राहक ने मेरे काम का एक हिस्सा सीधा उसे दे दिया, क्योंकि वह कम तनख्वाह पर था| मेरे घंटे कट गए|”
“बेरहम अर्थशास्त्र!” रोष उसका दर्द समझ गया| “तुम दर की छत से जा टकराए| तुम्हें बदलना, तुम्हें मेहनताना देने से ज़्यादा सस्ता पड़ गया| और ट्रेनिंग लो! अपनी योग्यता बढ़ाओ!”
“बढ़ानी ही पड़ेगी!” ठेकेदार ने नापसंदगी से अपने होंठ भींचे| “और कोई चारा नहीं| ज़िन्दगी में इन्साफ है ही नहीं|”
“फिर भी, किसी की मदद करने के लिए खुद को कोसो मत,” रोष ने उसे ढाँढस बँधाया| “उस कंपनी ने आखिरकार कोई सस्ता कारीगर वैसे भी ढूँढ ही लेना था| हमेशा से होता आया है ऐसा, कॉर्पोरेट जगत में हर जगह|”
“कभी मालिक इतने चुस्त नहीं होते, कि जान पाएँ कि तरक्की के हकदार कर्मचारी कौन हैं| कभी वे देख नहीं पाते कि काम कराने के लिए परदे के पीछे असल में पिला कौन पड़ा है| अपनी खुशी तो मत चुराने दो उन्हें|”
“रिकग्निशन (पहचान) लिए बिना काम करना सीख लो| हमारी कॉर्पोरेट दुनिया में बचे रहने का राज़ यही है|”
ठेकेदार इस विचार से सन्ना गया| रोष ने करुणा से उसे देखा, लेकिन अपनी चाय की चुस्की लेता रहा|
“मैं कोई संत नहीं,” ठेकेदार आखिरकार बोल पड़ा| “अब एक साधु की तरह सोचना तो नहीं सीख पाऊँगा| परिवार है जिसका पेट पालना है मुझे| तो, तुम्हारे इस बेरहम बिज़नेस जगत में मेरे जैसे आम आदमी के लिए कोई उम्मीद है, कि नहीं?”
“उम्मीद तो हमेशा होती है!” ठेकेदार के पीछे खुली, वार्ता कक्ष की खिड़की के बाहर फैली, चमकदार धूप को निहारते रोष ने, मुस्कराते हुए कहा|
'दुनिया उजियाली है,' उसे ख्याल आया, 'लेकिन धूप को अन्दर तो आने देना होगा|’
"एक किसान के पास कुछ घोड़े थे,” ठेकेदार को फिर से देखते हुए, उसने ख़ुशी से कहना जारी रखा| “एक बार, एक घोड़ा बीमार पड़ गया| तो किसान ने जानवरों के डॉक्टर (वेट) को बुलवा भेजा| पशु चिकित्सक ने बीमार जानवर की अच्छी तरह जाँच की|”
“बहुत बुरी हालत में है ये," डॉक्टर ने अंत में कहा| "लगता है किसी वायरल इन्फेक्शन (विषाणु संक्रमण) का शिकार हुआ है| किसका, ये नहीं पता!"
"नहीं पता?” तंग किसान हड़बड़ा गया| “लेकिन तुम तो डॉक्टर हो!”
“डॉक्टर भगवान नहीं होते, जानते ही हो,” डॉक्टर ने उदासी ने कहा| “उन्हें सब कुछ तो पता नहीं होता| हज़ारों वायरस हैं, जिनसे अनेकों रोग होते हैं – सीधे-सादे इन्फेक्शन से लेकर एड्स तक|”
"ज़्यादातर वायरस से घातक रोग नहीं होते| शरीर का इम्यून सिस्टम (प्रतिरक्षा प्रणाली) – उसका प्राकृतिक सुरक्षा नेटवर्क – इन विषाणुओं को मार गिरता है| कई मामलों में तो लोगों को पता तक नहीं चलता कि वे संक्रमित भी हुए हैं|”
“जीवाणु (बैक्टीरिया) को तो एंटीबायोटिक दवाएँ मार सकती हैं| लेकिन अधिकाँश विषाणुओं का कोई इलाज हमारी वर्तमान दवाओं के पास है नहीं| सौभाग्य से, टीका करण (वेक्सिनेशन) है, जो शरीर के प्राकृतिक प्रतिरक्षा कवच को विकसित करने में मदद करता है – और जिससे कई वायरल संक्रमण रुकते भी हैं| लेकिन टीकाकरण का विकल्प तो इस बेचारे बीमार के लिए अब रहा नहीं, है न?”
“मैं कुछ एंटी रेट्रो-वायरल (रेट्रो-वायरल विरोधी) दवाइयाँ लिख देता हूँ और रोगसूचक लक्षण प्रबंधन (लक्षणात्मक मैनेजमेंट) के लिए कुछ दवाइयाँ दे देता हूँ| लेकिन इनसे इस बेचारे पशु को सिर्फ लक्षणात्मक राहत ही मिलेगी, जैसे कि बुखार उतर जाएगा|”
"वायरस से ठीक होने में शरीर को वक्त लगता है| ज़्यादातर वायरल संक्रमणों में, प्रतिरक्षा प्रणाली कुछ ही दिनों में शरीर से वायरस रोगाणु साफ कर देती है| या कुछ हफ्तों में|”
"लेकिन कुछ वायरस ऐसे भी हैं, जिनसे संक्रमण लगातार या अव्यक्त होता है - जो सालों तक भी रह सकता है| ऐसे मामलों में लगता है कि रोगी ठीक हो गया, लेकिन बीमारी बाद में फिर लौट आती है|"
"इस घोड़े को साफ रखो, और हफ्ता-भर सबसे अलग रखो| अगर इसकी हालत बिगड़ी, तो इसे मारना पड़ेगा तुम्हें, ताकि फार्म (खेत) के दूसरे जानवरों को ये बीमारी न लग जाए|”
दवाइयाँ किसान को देकर वेट (वैद्य) लौट गया|
किसान की बकरी, जो संयोग से पास में ही चर रही थी, ने उनकी बातचीत सुन ली| जब घोड़े को दूसरे जानवरों से अलग करके दवा दे दी गयी थी, तो वह बीमार घोड़े के पास आई और बोली, “मज़बूत बन, दोस्त| जल्दी चंगा हो जा| हो सकता है तू!”
अगले दिन भी, घोड़ा कुछ बेहतर महसूस नहीं कर रहा था|
बकरी वापिस आई और बोली, “चल यारा, उठ जा और शुरू हो जा| नहीं तो गहरी नींद सुला देंगे तुझे ये!”
लेकिन अगले दिन, घोड़ा और भी बदतर महसूस कर रहा था|
बकरी ने फिर उसे खबरदार किया, “तेरा मीटर चल रहा है, साथी| अगर उठ के चला नहीं, तो मर जाएगा!”
लेकिन घोड़ा अगले दिन और भी ज़्यादा दुखी था| उठ न पाया|
“चल," बकरी ने उकसाया उसे| “मैं तेरी उठने में मदद करती हूँ| चल उठ! एक, दो, तीन..."
लेकिन बेचारा घोड़ा बिल्कुल उठ ही नहीं पाया!
और इसी तरह चलता रहा सब| हफ्ता बीत गया| घोड़े की हालत और बिगड़ी, शरीर कमज़ोर, मनोबल नीचे| वेट उसे फिर देखने आया, और उसने फैसला सुना दिया, “बदकिस्मती से, इसे जाना होगा| नहीं तो, वायरस फैल सकता है, और घोड़ों को लग सकता है|”
वेट को विदा करने जब किसान उसके साथ चला, तो बकरी दौड़ कर घोड़े के पास आई और मिमियाई, “सुन मित्रा, या अब या फिर कभी नहीं| हिम्मत कर! अब खोने को क्या है! उठ खड़ा हो! जान लड़ा दे!”
घोड़े ने एक ज़बरदस्त कोशिश की और अपने लड़खड़ाते पैरों पर उठ खड़ा हुआ| बकरी उसकी हिम्मत बढ़ा रही थी, “ये बात चैम्प| कर दिया तूने! अब आगे बढ़ ... बहुत खूब! दुलकी चाल, अब रुकना नहीं ... वाह! सरपट दौड़, हवा से बातें कर ... आहा!"
जब अपने जीवन के लिए दौड़ते घोड़े का आत्मविश्वास कदम-दर-कदम बढ़ रहा था, और बकरी किनारे खड़ी प्रोत्साहन देती मिमिया रही थी, तो लौटते किसान ने अपनी आँखों से एक चमत्कार होते देखा|
"मेरा घोड़ा ठीक हो गया!" किसान खुशी से चिल्लाया। "खुदा का लाख-लाख शुक्र है!”
"इस अलौकिक वापसी का जश्न मनाने के लिए, उसने उस रात बकरी पका डाली!"
ठेकेदार हक्का-बक्का था, धन्धे का सबक अभी भी साफ नहीं हुआ था उसे|
रोष ने उसाँस भरी, उसके हाथ से उसका चाय का खाली कप लेकर, उसे मेज़ की ओर वापिस ले चला| ब्रीफिंग फिर से शुरू होने को थी|
"घोड़े की मदद करो,” उसने उसे आँख मारते हुए कहा, “लेकिन किसान को आगाह करके| भविष्य में जो भी करो, उसकी एक CC (कापी) अपने आकाओं को ज़रूर भेज दिया करो|”
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