विज्ञान-कल्प: ठंडा इस्पात - मुक्ति (Thanda Ispat – Mukti)
आला कमांडो काली ऊर्जा की शीशियाँ चुरा कर अंतरिक्ष में बेरोकटोक पहुँच तो जाता है|
पर मुक्ति एक छलावा है
पिछली टेलटाउन कहानी: ठंडा इस्पात - आज़ाद
माता-पिता अभी भी धीरे-धीरे पेरेंट टीचर मीटिंग के लिए आ रहे थे। शिक्षक ने अपनी घड़ी देखी, और इकट्ठा हो चुके अभिभावकों को देख कर मुस्कुराया|
“आने वालों को पाँच मिनट और देते हैं,” उसने घोषणा की| “फिर, शुरू कर देंगे|”
रोष को इसमें कोई परेशानी नहीं थी| वह जोश की मेज़ पर मंत्रमुग्ध बैठा, अपने बेटे की लिखी रोमांचक कल्पित विज्ञान कथा पढ़ रहा था:
हालाँकि मेरा मन तेज़ी से चंगा हो गया था, पर वो शरीर जिसमें वो बसता था, अभी भी टूटा हुआ था| मैं लड़खड़ा गया|
ठन्डे इस्पात से आज़ाद हो जाने के बाद भी, उसके ख्याल-मात्र से ही मेरी रीढ़ में झुरझुरी दौड़ रही थी| मेरी यादों में गुदी तस्वीरें मेरे मन के खली कैनवास पर विस्फुटित हो रही थीं| लेकिन खोने को वक़्त था नहीं|
‘खबरदार रह,’ मैंने खुद को चेतावनी दी| ‘ज़िन्दा रह!’
बिना कोई शब्द बोले, मैंने अपने मुक्तिदाता बने जल्लाद को मानसिक आज्ञा दी, कि वह मुझे अपने हाई सिक्योरिटी परिसर से बाहर छोड़ आये| वह दरवाज़े की ओर मुड़कर रेटिना स्कैन के लिए झुक गया|
हमारे दरवाज़े के बाहर तैनात गार्ड रोबोट हम दोनों को बाहर निकलता देख कुछ हैरान-से लगे, लेकिन किसी ने हमें रोका नहीं|
उच्च सुरक्षा सुविधाओं के बाशिन्दों की पहचान और जान बचाए रखने के लिए गार्डों को वहां ज़्यादातर सिर्फ ज़रुरत-भर-जानकारी दी जाती है| ये कोई अलग नहीं होना चाहिए| अपनी ट्रेनिंग में इस बात पर भरोसा किया था हमने|
इस जगह के विस्तृत तकनीकी सुरक्षा उपायों को देखकर मैं फिर भी रोमांचित था| विभिन्न दरवाज़े खोलने और इन्फ्रारेड डिटेक्टर और लेज़र के बीच से रास्ता निकलने के लिए मेरे प्रश्नकर्ता ने अलग-अलग चीज़ों का उपयोग किया| कहीं आवाज़ से आदेश, कहीं फिंगरप्रिंट (ऊँगली की छाप) स्कैन| एक दरवाज़े पर तापमान जाँच, दूसरे पर रक्त स्कैन।
प्रौद्योगिकी में भरोसा सर्वव्यापक था, लोगों पर भरोसा कहीं नहीं| मुझे परवाह नहीं थी इसकी, नतीजा मेरे पक्ष में था| मेरा रक्षक जब अपनी गाड़ी में मुझे वहाँ से बाहर ले जा रहा था, तब भी परिधि पर तैनात गार्ड रोबटों ने हम पर कोई ध्यान नहीं दिया|
अविश्वसनीय रूप से आसान था ये सब – मेरी आज़ादी से पहले हो चुके चरम ड्रामा, खून और पसीने के चरमोत्कर्ष का लगभग उल्टा|
जब वो मुझे मेरी मंज़िल तक ड्राइव करके ले जा रहा था, मैंने उससे पूछा, “तुमने ढूँढा कैसे मुझे?”
काली ऊर्जा की शीशियों पर गुदे माइक्रो ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (MGPS) बीकन के बारे में तब उसने मुझे बताया| शिनाख्त से बचने के लिए, उनके ट्रान्सीवरों की प्रोग्रामिंग ऐसी की गयी थी कि वे गुप्त अंतरिक्ष आवृत्तियों पर कोआर्डिनेट तभी भेजें, जब वे हरकत में हों|
तो, जब भी शीशियों को कहीं लाया, या ले जाया रहा होता था, बीकन के गति सेंसर खुद-ब-खुद चालू होकर, समय-समय पर संकेत धाराओं में अपनी स्थिति निर्देशांक किसी अज्ञात गंतव्य को, किसी अनभिज्ञेय वेवलेंग्थ पर भेजते रहते थे|
कोस उठा मैं| तो, अब भी जब मैं उन्हें लेकर यहाँ से भाग रहा था, वे लगातार अपनी पोजीशन प्रसारित करते रहे होंगे| मैं नज़र में था, और खतरे में भी| मुझे गायब होना था| तुरंत!
स्थिति और खतरों का पूरी तरह विश्लेषण करने का वक़्त नहीं था, पर मैं अपनी पूर्व-निर्धारित मुलाकाती जगह पर लगभग पहुँच ही चुका था|
मैंने अल्ट्रासोनिक ओकटेट (अष्टक) में एक बेआवाज़ सीटी मारी| और इनाम में तुरंत ही मेरे छुपे हुए अन्तरिक्ष यान के इंजन शुरू होने की बेहद धीमी गुनगुनाहट सुनाई दी|
उसे गति कम करने का मौका दिए बिना, मैं उसकी चलती कार से कूद कर दौड़ पड़ा| मेरे अदृश्य पोत ने मेरी दौड़ती आकृति पहचान ली, और पलक झपकते ही, बीच हवा से मुझे उठा कर वापिस मेरी पायलट सीट में टेलीपोर्ट कर लिया|
अंतरिक्ष क्षेत्र 47B9 के लिए मार्ग सेट करके मैंने ऑटो-पायलट लगा दिया| अभी भी बाहर दौड़ रही कार में उसे देखकर, मैंने उसे लैब लौटकर अपने लिए एक आखिरी काम करने का मानसिक आदेश प्रेषित किया|
एक ट्रोजन अपने दुश्मन को वापिस भेजने में कोई बुराई नहीं| बुरे से बुरा भी हुआ, तो वो झांसे की तरह तो काम करेगा ही, और मुझे कुछ और वक़्त मिल जाएगा| फिर उसे बिल्कुल भुला कर मैंने ज़्यादा महत्वपूर्ण बातों की ओर ध्यान दिया|
अपने वक्षस्त्राण (जिरह-बख्तर, कवच) के वक्षस्थल (छाती का स्थान) पर मैंने चाँदी स्प्रे कर दी ताकि शीशियों के MGPS प्रसारण कट जाएँ| अन्तरिक्ष में निर्विघ्न गुज़रते हुए, अपने पोत से मिशन कण्ट्रोल के लिए मैंने एक मिनिअसंकै (मिशन नियंत्रण के लिए अग्रिम संचार कैप्सूल) बोलकर लिखवा भेजा|
‘जल्दी ही, ये खत्म हो जाएगा,’ मैंने राहत की एक अनजानी सांस छोड़ते हुए सोचा| ‘ठन्डे इस्पात से बच आया मैं| मुक्त हो गया| सलामत हूँ| घर जा रहा हूँ, अपना इनाम लेकर| और क्या मांग सकता था?’
अपनी सीट में धँस कर, खुद को बह जाने दिया मैंने| आखिरकार मैं सुरक्षित था...
एक नाटी, कद्दावर आकृति ऐसे ही एक छोटे से खाली कमरे के बीचों-बीच खड़ी थी, जिसकी सफ़ेद नीची छत से रोशनी छन-छन कर आ रही थी| फर्श फाइबर ग्लास का था, और कमरे में अस्पताल जैसी गंध थी|
अपनी 3 डी स्क्रीन पर आकाश में ऊँचा उठते एक ट्रैकर सिग्नल को वह बड़े ध्यान से देख रहा था|
“आखिरकार,” उसने संतुष्टि से कहा| “अब पता चलेगा कि वो आये कहाँ से थे| जो जैव ट्रैकर हमने उसमें रोपा था, वो अच्छी तरह खिल गया है|”
"और उन डार्क एनर्जी शीशियों का क्या, जो वो चुरा ले गया?” उसका सहायक टर्राया|
“कवच तोड़ने दो उन्हें| गामा-रे विस्फोट भून देगा उनके गृह को|”
अगली टेलटाउन कहानी: पढ़ें इस किस्से से आगे की कथा: क्या बकरी बकरी है? | Kya Bakri Bakri Hai (अभी अप्रकाशित)