पुनरुक्त अरेबियन नाइट्स किस्से: अली बाबा और 40 डाकू 21 (Ali Baba Aur 40 Daku 21)
बदले की प्यास लिए, डाकुओं का सरदार शहर लौट आया|
और सौदागर ख्वाजा हसन बन गया...
पिछली टेलटाउन कहानी: अली बाबा और 40 डाकू 20
“सही है,” रोष ने हामी भरी| “लेकिन ये अरेबियन नाइट्स किस्सा प्यार के बारे में नहीं| ये दास्तां दर्द की है!”
“दर्द जो गुस्से में बदल गया| गुस्सा जो नफरत में तबदील हो गया| नफरत – जिसे जोता जाना चाहिए| सड़ने के लिए छोड़ नहीं देना चाहिए|”
“देखो न, गुस्सा बहते पानी की तरह है| जब तक बहता रहे, तब तक उससे कोई दिक्कत नहीं है| नफरत ठहरे पानी की तरह है| वो गुस्सा जिसे महसूस करने की आज़ादी तुमने खुद को नहीं दी, जिसे बहने की आज़ादी नहीं| पानी जो तुमने एक जगह इकट्ठा कर लिया और भूलने के लिए छोड़ दिया|”
“ठहरा पानी गन्दा हो जाता है| बदबूदार, बीमारी-भरा, ज़हरीला, खतरनाक| ये है नफरत तुम्हारी| इसे नासूर बनने को ऐसे छोड़ नहीं सकते हम| इसे कुछ और बनना बाकी है| इसे बहाना होगा, रास्ता दिखाना होगा, नहीं तो ये ज़िन्दगी को ही संक्रमित करने लगेगी, उसे ही लीलने लगेगी|”
“हर ज़िन्दगी में आते हैं दर्द और नुकसान| ये पैकेज डील में ही हैं| सरदार में कमी ये थी कि वह महसूस बड़ी शिद्दत से करता था, और चीज़ों को जाने देने का हुनर नहीं रखता था| वो मेरी तरह था| ज़रूरत से ज़्यादा भावुक, ज़रुरत से ज़्यादा स्वाभिमानी|”
“अपने काम पर गर्व और उसके लिए जुनून ज़रूरी हैं, सफलता के लिए| वो अच्छे हैं| लेकिन जुनून एक भयानक जाल हो सकता है, और दर्प एक भयानक दोष| जैसे उनसे कामयाबी मिलना तय है, वैसे ही उनसे नाकामयाबी भी तय है|”
“लोग सोचते हैं कि हिकारत बुरी बला है, लेकिन ये फायदेमंद हो सकती है| लालच की तरह| अगर सरदार लालची होता, तो बकाया खज़ाना लिए, सलामती से अब निकल सकता था| ज़िन्दा रह सकता था, पहले से कहीं ज़्यादा रईसी से| उसे निकल लेना चाहिए था|”
“लेकिन अपनी त्रासदी में उसे कोई उपहार न मिला| सिर्फ अपराध भाव मिला! मान और शर्म ने उसे आगे बढ़ने से रोक दिया, और फिर वो कटिबद्ध हो गया| बदले के लिए| अपने मुर्दा भाइयों के| जुर्म के रास्ते पर साथ चले अपने गुज़रे साथियों के लिए|”
रोष ने रुक कर चारों ओर देखा| कोई और आपत्ति नहीं हुई| उसने कथा आगे बढ़ाई:
“जब उसके दिमाग पर छाई बदली छटी, तो सरदार ने मामले पर सोचना शुरू किया| हालाँकि उसे अभी भी इल्म न था कि कैसे उसका पूरा गिरोह एक झटके में काबू कर लिया गया, और कैसे वे सब हलाक़ हुए, पर एक बात शीशे की तरह साफ थी| उसे अली बाबा को मारना होगा|”
“स्वाभिमान बदला चाहता था| और ये करना भी उसे अभी होगा, जबकि ज़ख्म ताज़ा था| न्याय में देरी अन्याय होती है| अली बाबा को तो जाना ही पड़ेगा, इसलिए भी कि वह उनका जादुई राज़ जानता था|”
“नहीं तो कैसे वो, और जिस आदमी के टुकड़े उन्होंने गुफा में पहले किये थे, उनके ख़ुफ़िया अड्डे में घुस पाते और उनका खज़ाना चुरा पाते? ज़िन्दा छोड़ने पर तो, उनकी बाकी दौलत में सेंध लगाने उसका लौटना तय ही था|”
“अपनी गुफा में एक रात आराम करने और काफी सोच लेने के बाद, सरदार ने शहर लौटने का फैसला किया| अपना अगला हमला बेहतर प्लान करने के लिए उसे अपने दुश्मनों के बारे में और सुराग चाहिए थे|”
‘एक ही रात में इतने कत्लों की खबर अब तक हाकिम तक पहुँच गयी होगी,’ सोचकर उसे कुछ तसल्ली हुई| ‘अलीबाबा को शायद अब तक गिरफ्तार करके सज़ा सुना दी गयी होगी, उसकी जायदाद ज़ब्त और घर गिरा दिया गया होगा| इस सब के शहर में खूब चर्चे होने चाहिए|’
सरदार अगली सुबह जल्दी उठ गया| एक नया हुलिया बनाकर, वह अपने घोड़े पर सवार हो, शहर में लौट आया| एक कारवाँ सराय के आगे उतर कर, वह सीधा सराय के मालिक के पास गया, और गपशप करने लगा|
सराय के मालिक ने भी ख़ुशी से हालचाल बाँटे, लेकिन जिन मामलों में सरदार की गुप्त दिलचस्पी थी उनके बारे में कोई खबर न थी|
सरदार समझ गया कि उसका मुकाबला एक काइयां दुश्मन से था| न सिर्फ अली बाबा ने कामयाबी से उसके खज़ाने को ही ठिकाने लगाया था और इतनी जानें तबाह की थीं, बल्कि ये सब उसने बिना खुद के किसी माली नुकसान के, और बिना कोई शक पैदा किये अंजाम दिया था|
‘इस चंट के हाथों में न पड़ने के लिए मुझे अपने पूरे होशो-हवास की ज़रूरत पड़ेगी,’ सरदार ने सोचा, ‘या फिर अपने भाइयों का बदला लेने से पहले मैं खुद ही मिट जाऊँगा|’
वह बाज़ार की ओर निकल गया, खाना खाया और स्थानीय लोगों के बीच घूमने लगा| इधर-उधर बेमकसद घूमते हुए उसे कासिम की दुकान दिखी, जहाँ उसका बेटा अब कारोबार कर रहा था|
हालांकि सरदार को ये नहीं पता था कि ये जवान सौदागर अली बाबा का भतीजा है, फिर भी वह उसे एकदम पहचान गया, क्योंकि जब उसने अली बाबा के यहाँ रात गुज़ारने को शरण ली थी, तो इस नौजवान को उसने वहां रहते हुए देखा था|
इस युवा व्यापारी के स्टोर के बगल में, किराये के लिए एक दुकान खाली थी|
‘कैसी खुशकिस्मती!’ सरदार ने सोचा| ‘शायद यही वो मौका है जिसकी मैं तलाश में हूँ|’
उसने दुकान के मालिक से थोड़ा मोल भाव किया, और दुकान भाड़े पर ले ली| अगले कुछ दिनों में उसने, अपनी खज़ाने से भरी गुप्त गुफा से बेहतरीन चीज़ें और माल लाकर दुकान भर दी, और ख्वाजा हसन के नाम से कारोबार करने लगा|
अपने सभी पड़ोसी दुकानदारों से उसने जल्दी ही दोस्ती गाँठ ली, जिनमें कासिम का बेटा भी शामिल था, जिसके साथ वह हर वक़्त ख़ास तौर पर बड़ी दरियादिली और गर्मदिली से पेश आता|
कुछ दिन बाद, अली बाबा दुकान का नियमित मुआयना करने आया, ये देखने कि धंधा कैसा चल रहा है| हसन ने उसे देखा और तुरंत पहचान लिया|
अली बाबा के चले जाने के बाद, हसन कासिम की दुकान पर गपशप करने के बहाने आया|
“मुझे उस बुढ़ऊ जैसे गाहक कतई पसंद नहीं,” उसने कहा| “ये लोग वक़्त बहुत बर्बाद करते हैं| देखनी हर चीज़ हैं, लेनी कभी कुछ नहीं| अगर वो मेरी दुकान पे कभी चढ़ा, तो मैं तो उसे बाहर कर दूँगा|”
“ओह वो?” भतीजा हँसा| “वो ग्राहक नहीं थे| चचा हैं मेरे, मेरे वालिद के भाई, और इस दुकान के मालिक|”
“ओह,” हसन ने खीसें निपोर कर ज़रा शर्मिन्दगी का नाटक किया| “माफ़ी चाहता हूँ| चोट पहुंचाने का कोई इरादा नहीं था|”
“चोट पहुँची भी नहीं,” कासिम के बेटे ने उसे तसल्ली दी, और फिर दोनों खिलखिला उठे|
दोनों के बीच दोस्ती तेज़ी से बढ़ चली| खाली वक़्त में दोनों अक्सर साथ बैठ कर, देर तक बतियाते| हसन आदतन उसे छोटे-छोटे तोहफे देता रहता, और वे दोपहर का खाना भी अक्सर साथ बैठ कर खाने लगे|
हसन रईसी से जीता था| उसकी पोशाक हमेशा महँगी होती, उसका खाना हमेशा लज़ीज़| हालाँकि कासिम का लड़का ख्वाजा हसन की उदारता का बदला पूरी तरह नहीं चुका पाता था, हसन को इससे कोई गिला न था| देता वो खुल कर था, बदले में कुछ चाहे बिना|
फिर भी, बीतते वक़्त के साथ, कासिम के बेटे के मन में उसके नज़राने लौटाने का एहसास ज़ोर मारने लगा| उसने अपने चाचा से बात की| एक अमीर सौदागर से अपने भतीजे के बढ़ते ताल्लुकात को पुख्ता करने के लिए अली बाबा ने ख़ुशी से उसका साथ दिया| यारी तो वैसे भी बड़ी चीज़ होती है|
अली बाबा ने मशवरा दिया कि हसन को अगली जुम्मे रात दावत पर अपने घर बुला लिया जाये| एक शानदार दावत का इंतजाम किया जाए| नाच गाने के साथ| दौलतमंद व्यापारियों से उसकी दोस्ती की क़ाबलियत और एक अमीर का उसका रुतबा साबित करने के लिए, ज़रूरी शानो-शौकत की भी नुमाइश की जाए|
कासिम का बेटा शुक्रगुज़ार हो गया| उसने बड़े जोशो-खरोश से हसन को न्योता दिया| हसन ने बड़े ख़ुलूस से उसकी दावत कुबूल कर ली|
शुक्रवार का कारोबार ख़त्म करने के बाद, दोनों आदमियों ने अपनी-अपनी दुकानों को ताला लगाया और रात के खाने के लिए, साथ-साथ अली बाबा के घर चल दिए।
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