अरेबियन नाइट्स किस्से: अली बाबा और 40 डाकू 09 (Ali Baba Aur 40 Daku 09)
डाकू मुस्तफा के साथ अलीबाबा के घर तक आया, उसपर निशानबनाया, लेकिन मरजीना ने शिनाख्त बिगाड़ दी|
पिछली कहानी: अली बाबा और 40 डाकू 08
"मैं ये बता तो नहीं सकता कि मैंने ऐसा कहाँ किया,” मुस्तफा इस तौहीन से तिलमिला गया, “लेकिन आँखों पर पट्टी बाँध दो मेरे, और जैसे-जैसे मैं बताऊँ, वैसे-वैसे ले चलो मुझे| कीमत दोगे, तो ले जा सकता हूँ मैं वहाँ तुम्हें|”
डाकू ने इस प्रस्ताव के बारे में कुछ पल सोचा| संभावनाएँ उसे उकसा रही थीं, मगर बूढ़े के ग़रूर पर उसे शक था|
‘क्या वाकई ये बुढ़ऊ आँख पर पट्टी बाँध कर उन्हें सही घर तक ले जा सकता है?’ उसे हैरत हुई, ‘जबकि यह वहां सिर्फ एक बार गया है, महीनों पहले, और लौटाया भी दूसरे रास्ते से गया था|’
‘कोशिश करने में कोई हर्ज़ नहीं,’ उसने सोचा| ‘खोने को क्या है मेरे पास? ये बुड्ढा हैरतंगेज़ है, और पौ फटने में भी अभी घँटों बाकी हैं| अगर ये फेंक रहा है, तो जान तो आसानी से जाऊँगा मैं |’
आखिरकार उसने हामी भरी, और मुस्तफा के पंजे में एक और सुनहरी गिन्नी सरका दी|
बूढ़ा मोची अपनी दुकान खुली छोड़ कर बाहर चला आया, और उस जगह आकर खड़ा हो गया जहाँ मरजीना ने उसकी आँखों पर रुमाल बाँधा था|
डाकू ने मुस्तफा की आँखों पर पट्टी बाँध दी, और उसी घुमावदार रास्ते से ले जाया गया जो मरजीना ने लिया था|
बाँदी की साज़िशों से डाकू दंग रह गया, यह देखकर कि कैसे बूढ़े चालाक लोमड़ को चकमा देने के लिए उसने फालतू में बगल की गलियों में घुस-घुस कर बूढ़े को वापिस लौटाया था|
लेकिन उससे भी बड़ा अजूबा उसे मुस्तफा को देखकर हो रहा था, जो बड़े इत्मीनान से कदम-दर-कदम गिनता बढ़ा चला जा रहा था|
फिर भी, इम्तहान तो अभी बाकी थे| ऐसा टेढ़ा-मेढ़ा रास्ता लेने के बाद भी अगर, आँखों पर पट्टी बंधा बूढ़ा मोची किसी भी घर की शिनाख्त करके उन्हें अपनी दुकान पर ठीक-ठाक वापिस ला सके, तो डाकू यकीनी तौर पर मानने को तैयार था, कि मौका छिपाये रखने के लिए किये गए बाँदी के षड्यंत्र मुस्तफा को मात नहीं दे पाए थे|
वह बूढ़े की अक्ल और पैने शऊर पर दंग था, लेकिन अपनी ज़बान पर काबू किये था कि कहीं बूढ़ा हार न जाए, या झूठ न बोल रहा हो|
ऐसा लगता तो नहीं था कि मुस्तफा लालच में उसके लिए ये सब तमाशा कर रहा हो, लेकिन ये शहर तो आखिर मुस्तफा का ही था| इन्हीं गलियों में बड़ा हुआ था वो| बचपन से इन्हीं गलियों का शायद उसने इस्तेमाल किया हो|
‘देखें क्या होता है,’ उसने सोचा| अपने अन्दर बुदबुदाते जोश पर सालों के अभ्यास और व्यवसायिक ज़रूरत के बावजूद मुश्किल से काबू कर पा रहा था वह|
उसकी तन्द्रा टूटी, जब आँखों पर पट्टी बँधा मुस्तफा अचानक चलते-चलते रुक गया, और इत्मीनान से एक घर की ओर इशारा करके बोला, “ये है| यहाँ आया था मैं उसके साथ|”
मुस्तफा जिस घर के सामने रुका था, वह कासिम का था, जहाँ उसका भाई अलीबाबा अब अपने बढ़े हुए परिवार के साथ रह रहा था|
डाकू ने एक सफ़ेद खड़िया लेकर दरवाज़े के किनारे पर एक ख़ास निशान बना दिया, ताकि आगे वह आसानी से इस घर को पहचान सके| इसके बाद वे दोनों अँधेरे में आगे बढ़ गए|
आँखों पर पट्टी बँधा मुस्तफा डाकू को उस दूसरे रास्ते से अपनी दुकान वापिस ले चला, जो मरजीना ने चुना था| ये देख कर डाकू दंग रह गया कि मुस्तफा रास्ते भर एक बार भी डगमगाए बिना अपनी दुकान तक वापिस आ पहुँचा|
“अब यकीन हुआ मुझपर?” अपनी आँखों से पट्टी हटाकर डाकू का रूमाल लौटते हुए उसने उसकी खिल्ली उड़ाई|
अभी देखे कारनामे पर दंग डाकू ने, मुस्तफा के बेमिसाल हुनर की शान और तारीफ में खुलकर सर झुकाया| मुस्तफा की झुर्री-भरी हथेली पर एक और अशर्फी उसने चुपचाप रख दी| फिर वह तेज़ी से अपने बाकी साथियों से मुलाकात करने लौट गया|
उनके जाने के कुछ वक़्त बाद, मरजीना घर के किसी काम से बाहर निकली तो अपने दरवाज़े पर अजीब सा सफ़ेद निशान देखकर ठिठक गयी|
इसपर थोड़ी देर सोचने के बाद, जब उसे इसमें किसी की शरारत का अंदेशा हुआ तो उसने अपने सभी पड़ोसियों के दरवाज़ों पर भी चाक से वैसा ही निशान बना दिया|
फिर भी, अपने वहम उसने अपने तक ही सीमित रखे क्योंकि वह राई का पहाड़ नहीं बनाना चाहती थी, और न ही ये चाहती थी कि मालिकों को नाहक परेशान किया जाए|
इस बीच, डाकू ने लौटकर साथियों को अपनी रोमांचक कहानी सुना दी थी, और बता दिया था कि कैसे उसे सुराग मिला| सरदार और उसके आदमियों ने शहर में मुलाकात की जगह तय की और छितरा गए| अलग-अलग वक़्त पर अलग-अलग रास्ते लेते, वे इक्का दुक्का करते शहर में घुस आये|
जिस आदमी ने अली बाबा के दरवाज़े पर निशान बनाया था, वह अपने नेता के साथ उसे मकान दिखाने निकला| वह सीधा उसे वहाँ ले गया, और दरवाज़े पर लगा अपना निशान दिखाते हुए बोला, “ये है!”
लेकिन जब सरदार ने अपने चारों तरफ देखा, तो आसपास के सभी घरों पर वैसे ही खड़िया के निशान उसे दिखाई दिए|
“इतने यकीन से कैसे कह सकते हो,” उसने पूछा, “जब पूरे पड़ोस में दरवाज़ों पर वैसा ही निशान है?”
अपना निशान अब इतने सारे अलग-अलग घरों पर देख कर गाइड यकायक बौखला गया और पेशोपेश में पड़ गया कि कौन से मकान पर खुद उसने अपना निशान बनाया था|
वे मुलाकात की तय जगह पर लौटे और मुखिया ने अपने आदमियों से बिखर जाने और अपनी गुफा मांद में फिर इकट्ठा होने को कहा|
गुफा में वापिस लौटे, तो सब गुस्से से भभक रहे थे।
"मजाक था क्या ये?" वे गरजे। "मशक्कत करायी बेकार| कितना अनाड़ी है? बेवकूफ! सब्ज़-बाग दिखा रहा था!"
"वो क्या होता है?" जोश ने पूछा।
“फारसी मुहावरा है,” रोष ने समझाया, “मतलब बेकार की तरकीबें बताना| धोखा देना, गलत जानकारी देना, वक़्त बर्बाद करना| देखो न, वहाँ जाकर उन्होंने कितना खतरा मोल लिया| लेकिन हासिल कितना कम कर पाए| तो वे उस पर बरस गए|”
“ख़ाक बर सर-अत,” वे अपने हारे हुए भाई पर फुफकारे| “तुझे तो मर जाना चाहिए!”
“ख़ाक बर सर-अम,” ज़िल्लत उठाते आदमी ने इकरार किया| “मुझे तो मर जाना चाहिए!”
उन्होंने उसका गला काट दिया।
फिर तेज़ी से योजना बनी, और एक ज़्यादा ज़िम्मेदार और मुस्तैद आदमी को इस काम को ठीक से अंजाम देने के लिए भेजा गया।
जोश बद गुमानी से रोष को घूर रहा था| अभी-अभी जो उसने सुना था, उसपर उसे भरोसा ही नहीं हो रहा था| 'ऐसी किसी चीज़ के लिए वे कैसे अपने भाई को मार सकते हैं?’ वह सोच रहा था| रोष ने उसकी खामोश निगाह देखी और उसके अविश्वास को ताड़ गया|
"लोग मुख्तलिफ होते हैं," उसने समझाने की कोशिश की। "उनके जीवन-मूल्य अलग होते हैं, वे सोचते अलग हैं| और वे हैरतंगेज़ कारनामे कर सकते हैं| अच्छा तो यही है कि उन्हें नापा-तोला न जाये, या कम से कम, बहुत जल्दी उनके बारे में कोई राय कायम न की जाए|”
“क्योंकि देखो न, जो कुछ भी करने लायक है, वो ठीक से करने लायक है| डाकुओं को लगा कि उनके साथी की गलती की वजह से उनका काम बिगड़ गया| गलतियाँ भारी पड़ सकती हैं| जिस दुनिया में वो रहते थे, वहाँ गलतियाँ घातक हो सकतीं थीं|”
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