अरेबियन नाइट्स किस्से: अली बाबा और 40 डाकू 04 (Ali Baba Aur 40 Daku 04)
कासिम खज़ाने तक पहुँचा तो, पर क्या उसे बाहर निकाल पाया?
परेशान दिमाग गलतियाँ करते हैं ...
पिछली कहानी: अली बाबा और 40 डाकू 03
कासिम ने अगले दिन 10 टट्टू किराये पर लिए और अलीबाबा के बताये रास्ते पर उन्हें हांकता, आसानी से जादुई चट्टान को पा गया|
"बाज़ कोन सिमसिम!" वह जोश में चिल्लाया।
आज्ञाकारी चट्टान ने उबासी लेते हुए अपना मुँह खोल दिया|
कासिम गधों को बाहर छोड़ कर अन्दर गया| उसके सुरक्षित अन्दर पहुँचते ही चट्टान का दरवाज़ा वैसे ही अपने-आप बंद हो गया जैसे उसे होना चाहिए था|
कासिम ने अली बाबा के बताये खजानों और गहनों के ढेर लगे देखे| अपने चारों ओर पड़े खज़ानों को देख-देख कर वह आनंदित होता उनमें घूमता रहा|
लूट का माल देखता-देखता जब वह आखिरकार थक गया, तो अपने दस खच्चरों पर लादने के लिए बोरे भरने लगा|
एक-एक करके वह उन्हें भरता और लाकर करीने से उन्हें गुफा के मुहाने पर लगाता, ताकि जानवरों पर रखने के लिए वे तैयार हों| लेकिन अपने जोश में वह जादुई पासवर्ड भूल गया।
"बाज़ कोन किशमिश,” जाने को तैयार होकर उसने चट्टान को आदेश दिया|
चट्टान बिना हिले, सिर्फ उसे घूरती रही| हैरान परेशान, उसने कई नामों से उसे बुलाया, लेकिन चट्टान टस से मस न हुई|
"बाज़ कोन मनकीश,” उसने कोशिश की| कोई नतीजा नहीं|
"बाज़ कोन घनौष,” उसने अपील की| कोई नतीजा नहीं|
"बाज़ कोन फट्टूष,” उसने प्रार्थना की| कोई नतीजा नहीं|
चट्टान के बंद मुहाने को घूरता, कासिम का चेहरा लालम-लाल हो चला और बढ़ती हताशा और डर के मारे वह कंपकंपाने लगा|
"बाज़ कोन खसखस,” वह परेशान हो बड़बड़ाया| कोई नतीजा नहीं|
"बाज़ कोन शंकलिश,” वह रुआंसा हो चिल्लाया। कोई नतीजा नहीं|
"बाज़ कोन मस्गूफ़,” वह रो पड़ा| अब भी कोई नतीजा नहीं|
वह निराश हो गया|। जितना ज्यादा वह याद करने की कोशिश करता, उतना ज़्यादा उसे सब कुछ निराशाजनक लगता|
"बाज़ कोन सिमसिम,” नन्हा जोश चादर के नीचे से उसकी मदद करने को फुसफुसाया, “बाज़ कोन सिमसिम है!"
“हाँ,” रोष ने कहा| “लेकिन लोग भूल जाते हैं न चीज़ें, जब वे परेशान होते हैं| इसीलिए इम्तहान से पहले की रात देर तक या ज़्यादा मुश्किल पढ़ाई नहीं करनी चाहिए|”
“क्योंकि फिर तुम इतने थक जाओगे और अगले दिन इतने चिन्तित होगे, कि आसान चीज़ें तक भूल जाओगे| जैसे सिमसिम कासिम की याददाश्त से ऐसे उतर गया था मानो उसने कभी वो लफ्ज़ सुना तक न हो|”
बच्चों ने गंभीरता से सिर हिलाया| रोष ने अरेबियन नाइट्स किस्सा जारी रखा:
कासिम अपने पैरों तले बिछी अशर्फियों पर आगे पीछे चहलकदमी कर रहा था, उन से बेखबर।
अपने चारों ओर फैले सोने और चांदी के बर्तनों के आगे पीछे वह चहलकदमी कर रहा था, उन से बेखबर।
महंगी रेशम, पोशाकों और कालीनों के इर्द-गिर्द वह आगे पीछे चहलकदमी कर रहा था, उन से बेखबर।
अपने दिमाग पर उसने ज़ोर दिया| बार-बार| लेकिन वो शब्द बाहर आने को तैयार न था| और तब उसने सुनी| अपनी मौत की आवाज़| लेकिन तुरंत उसे पहचान नहीं पाया|
नगाड़ों की लयबद्ध चोट जैसा जामा पहन कर ये आई थी, धीरे-धीरे ऊँची होती, धीरे-धीरे पक्की| उसके पाँव तले की ज़मीन से उभरती| वो जानता नहीं था कि धूल का एक गुबार पेड़ों के बीच से ऊँचा उठता, तेज़ी से उसकी ओर बढ़ रहा है|
"जल्दी!" जोश चिल्लाया। "चालीस चोर आ रहे हैं!!"
होश दाँतों से अपने नाखून काट रहा था। ईशा रजाई के और अन्दर घुस आई थी| रोष कहता रहा:
कासिम बुरी तरह परेशान और बेचैन था| ये दौलत, जिसे देख कर कुछ ही घंटे पहले वो इतना आनंद मग्न हो गया था, अब उसे भारी पीड़ा और कड़वाहट से भरे दे रही थी|
और तब वो उस लयबद्ध आवाज़ को समझ गया| समझ गया उसकी ताल का मतलब| धरती को ठोकते 80 लयबद्ध खुर, और उनके तुरंत पीछे आते और 80|
द्र्रुप द्र्रुप| द्र्रुप द्र्रुप| द्र्रुप द्र्रुप|
“याल्लाह,’ वह सिसक उठा| ‘तो ये है क्या!"
खुद को कैद महसूस करता| उदास|
वह घुटनों के बल ढह गया| और अपनी मौत का इंतजार करने लगा| प्रतीक्षा करने लगा उनकी, जो अपने साथ उसे लेकर आ रहे थे|
गुफा तक पहुंच कर, कप्तान और उसकी टुकड़ी घोड़ों से उतरे| इतने सारे खच्चर चारों ओर देख कर वे उलझन में पड़ गए| उन्हें भटके हुए गधों की कोई परवाह नहीं थी, लेकिन एक ही समय में शहर से इतनी दूर इतने सारों का भटक कर आ जाना किसी अपशकुन सा था।
और इससे भी बड़ा हैरतंगेज़ संयोग ये था कि वे सारे छुपी गुफा के मुहाने के बाहर आ इकट्ठे हुए थे।
पूर्वाभास से भरे कैप्टन ने सिमसिम को खुलने के लिए आवाज़ दी: बाज़ कोन सिमसिम!
वह तुरंत खुल गया| और तब उन्होंने उसे देखा। अपनी तलवारें लेकर वे उस पर टूट पड़े और तुरंत उसे मार डाला। उसके बदन को चार टुकड़ों में काट कर उन्होंने गुफा के प्रवेश द्वार के अंदर लटका दिया।
फिर उन्होंने गुफा की तलाशी ली, लेकिन अन्दर और कोई नहीं मिला| कासिम ने जो बोरियां बाँध कर प्रवेश द्वार के पास रखीं थीं, उन्हें खोल कर उन्होंने वे खज़ाने जहाँ से उठाये गए थे, वहीं वापिस रख दिए|
तफसील से उन्होंने चर्चा की| हैरान थे कि कासिम कैसे उनकी रहस्यमयी मांद के अंदर घुस पाया होगा| ये तो हो नहीं सकता था कि छत के महीन छेदों से वह अन्दर टपक आया हो|
वह गुफा के गुप्त दरवाज़े से भी तब तक अन्दर नहीं आ सकता था, जब तक कि उसे खोलने वाला जादुई जुमला उसे पता न हो| पर ऐसा होना तो असंभव था| जब तक कि उनमें से एक खुद, गद्दार न हो| और उसने उसे वह खोलने की तरकीब न बता दी हो|
उस शाम जब सिमसिम को बंद करके डाकू घोड़ों पर सवार हो वापिस चले, तो हर पेशानी पर परेशानी की शिकन थी| शंका ने मन में घर कर लिया था| क्या उनके बीच कोई गद्दार हो सकता था? उनका अपना ही भाई?
वे जानते थे कि अब एक दूसरे पर उन्हें शक करना होगा। विश्वासघात के खिलाफ उनका ये ही एक अकेला बचाव हो सकता था।
जब रात घिर आई और कासिम नहीं लौटा, तो उसकी बीवी बहुत घबरा गई| वह मदद के लिए अली बाबा के पास गई|
“तुम जानते हो वे कहाँ गए थे," वह बिलख उठी| “अभी तक वापस नहीं आये| मेरे मन में बहुत बुरे-बुरे ख़याल आ रहे हैं|”
अली बाबा ने उसे ढाॅढ़स बंधाने की कोशिश की, लेकिन कुछ फ़ायदा नहीं हुआ| उसे खुद बद का अंदेशा हो रहा था, लेकिन पहले से ही संतप्त अपनी नातेदार से अपने मन के पूर्वाभास बाँटने से क्या मिलने वाला था|
"कासिम सिर्फ अपनी होशियारी दिखा रहा है,” उसने कहा| “लूट के साथ आज रात अँधेरे में वो तब लौट आएगा, जब उसे माल लाता देखने के लिए आसपास कोई नहीं होगा| घर जा और उसका इंतज़ार कर|”
जब कासिम की पत्नी फिर भी व्याकुल रही, तो उसने उससे वादा किया कि अगर सुबह तक भाई वापस नहीं पहुँचा, तो वह खुद उसे ढूँढने जायेगा| आखिर वह घर लौट गयी|
सारी रात वह चुपचाप रोती रही, इस डर से कि फालतू हो-हल्ले से पड़ोसी जाग जायेंगे और इससे उनकी बदनसीबी और ही बढ़ेगी| सारी रात वो खुद को अपनी ईर्ष्या के लिए कोसती रही, जिसकी वजह से ये सारी मुसीबत आ खड़ी हुई थी।
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