आध्यात्मिक कहानियाँ
बोधकथा: झीनी चदरिया
कबीर कहते हैं शरीर आत्मा की चादर है| निर्मल मिलती है, हम मैला कर देते हैं| जतन से कैसे ओढ़ें?
मशहूर कविता का भावार्थ व अनुवाद
“मैं खुशी चाहता हूँ,” एक आदमी ने कभी बुद्ध से कहा था|
चाइना पीक से नैनीताल को निहारते रोष को, बुद्ध दे जाते हैं खुशी और सुकून के राज़|
पुनरुक्त अरेबियन नाइट्स किस्से: अली बाबा और 40 डाकू 20
उसका दर्द क्रोध में बदल गया|
क्रोध घृणा बन गया| घृणा ने उसे जीने का मकसद दे दिया|
बोधकथा: कोई दोस्त है न रकीब है
- जगजीत सिंह की गाई, राणा सहरी की गज़ल के तर्जुमा के साथ, और
- सचिन लिमये की गाई ‘न सुबूत है’ के अनुवाद व मतलब के साथ
बच्चों के लालन-पालन के प्रश्नों में उलझी एक आध्यात्मिक कहानी
“जीवन-दीक्षा के आगे मेरी दीक्षा तुच्छ है, तेरी कृतियों पर मेरे हस्ताक्षर छोड़ देगी,” ये कह चित्रकार पिता ने अपने ही पुत्र को दीक्षा नहीं दी|
माँ-बाप न सिखाएँ, दिशा ने दें, तो बच्चे क्या सीख पाएँगे?
बोधकथा: तुम पत्ता हो या जड़?
जीवन में आये लोगों की, एक पेड़ के हिस्सों से तुलना व उनका वर्गीकरण:
पत्ता लोगों, शाखा लोगों और जड़ लोगों में
आध्यात्मिक कहानी: सनी कैसे न?
बरसात की एक अँधेरी रात में कबीर अपनी पत्नी माई लोई को एक साहूकार के पास ले चला ताकि वो उसके साथ सोकर अपना कर्ज़ उतार ले
एक कैद बेटा जेल में रह कर भी अपने पिता की समस्याएँ सुलझा देता है|
जहाँ चाह, वहाँ राह|
हम अपने दिलों की दूरी से जुदा होते हैं, शरीरों की दूरी से नहीं|
बोधकथा: हम काम किसलिए करते हैं?
पैसे के लिए, या उस क़ाबलियत के लिए कि हम अपना वक़्त और पैसा अपने प्रियजनों पर खर्च कर सकें|
आध्यात्मिक कहानी: नेक सामरी
अच्छा बनने में खतरा है| तो इस पुनरुक्त ईसाई दृष्टांत में यीशु का सन्देश क्या था?
हमारे जीवन में धर्म का क्या उद्देश्य है?